भूपिंदर सिंह: उनकी आवाज में कोई अवधूत हरदम गाता था..!

बीते जमाने के मशहूर पार्श्व गायक और गजल गायक भूपिंदर सिंह की आवाज सोमवार को अल्प बीमारी के बाद हमेशा के लिए खामोश हो गई। इसी के साथ सिने संगीत के सुनहरे दौर का एक और चमकता सितारा बुझ गया।

अजय बोकिल
मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, मन्ना डे, मुकेश, तलत महमूद जैसे महान प्ले बैक सिंगरों के स्वर्णिम और बेहद प्रतिस्पर्द्धी दौर में एक सामान्य संगीत परिवार से आए भूपिंदर ने अपनी एकदम अलग आवाज से सुनने वालो के दिलों में वो जगह बनाई कि आज भी उनके Ajay Bokilगाए गीतों को सुनकर लगता है कि ये गीत मानो भूपिंदर के लिए ही बने थे और ये गीत केवल भूपिंदर ही गा सकते थे। ‘ होके मजबूर तुझे उसने भुलाया होगा से लेकर ‘किसी नजर को तेरा इंतजार आज भी है’…तक भूपिंदर के गाए बेमिसाल गीतों की लिस्ट लंबी है। लेकिन असल चीज है, भूपिंदर की एकदम अलहिदा और पोर-पोर झंकृत करने वाली आवाज का जादू। वो आवाज जो मानो कहीं उस पार से आती थी और इस पार आते-आते सीधे पाताल में समा जाती थी। बीच में होता था एक केवल एक सुरीला नशा। कभी कभी लगता है सरस्वती ने मुकेश, तलत, जगजीतसिंह और थोड़ा सा रफी और किशोर कुमार को लेकर जो लाजवाब काॅकटेल तैयार किया था, वो था भूपिंदर सिंह का स्वर। भूपिंदर मित्रों में भूपी के नाम से मशहूर थे। भूपी ने अपने समकालीन पार्श्व गायकों की तुलना में संख्या की दृष्टि से भले बहुत कम गीत गाए, लेकिन जो गाए, उनमे हर गीत मानों खरे मोती-सा है। यानी भूपिंदर अपनी मिसाल आप हैं फिर चाहे ‘मोको कहां ढूंढे रे बंदे’ जैसा भजन हो या फिर ‘करोगे याद तो हर बात याद आएगी’, जैसी गजल हो, भूपिंदर अपनी लकीर अलग खींचते हैं और उस लकीर में रसिक को नख-शिख तक डुबो देते हैं।

कभी-कभी लगता है कि जो गीत शायद कोई ठीक से न गा सकता हो, वह भूपिंदर ‍के हिस्से में आता होगा। फिल्म ‘घरौंदा’ का गीत ‘दो दिवाने शहर में रात में या दोपहर में आशियाना ढूंढते हैं’ में प्रसिद्ध संगीतकार जयदेव ने फिल्म के हीरो अमोल पालेकर के लिए येसु दास की जगह भूपिंदर की आवाज ली। कारण एक युवा बेघर दंपति की बेबसी और उस बेबसी में छिपा फक्कड़पन शायद भूपिंदर की आवाज में ही नमूदार हो सकता था। वही हुआ भी। इस युगल गीत में रूना लैला की खनकती आवाज के बावजूद भूपिंदर के सुर की उदासी कहीं कमजोर नही पड़ती।

‘विविध भारती’ को दिए एक इंटरव्यू में भूपिंदर सिंह ने खुद बताया था कि संगीत उन्हें अपने पिता से विरासत में मिला। वो अमृतसर में रहते थे। हालांकि देश का विभाजन हुआ तब वो महज सात साल के थे और पार्टीशन की धुंधली यादें उनके जेहन में थीं। भूपिंदर अच्छे गिटार वादक भी थे। कहते हैं कई फिल्मी गीतों में उन्होंने गिटार वादन भी किया है। लेकिन उनकी खांटी पूंजी अनूठी आवाज थी। जिसमें दर्द और बिंदासपन का अनोखा और बेहद असरदार मिश्रण था। कहते हैं कि महान पार्श्व गायक और संगीतकार हेमंत कुमार के सुर में एक साधु गाता सा हरदम महसूस होता था। उसी तरह भूपिंदर सिंह की आवाज में कोई अवधूत हमेशा गुनगुनाता रहता था, जो इस लोक में रमते हुए भी परलोक का करंट अकाउंट सदा आॅपरेट करता रहता था। भूपिंदर महफिलों में भी गाते थे, पर उनकी स्वर साधना किसी निराकार ईश्वर के प्रति ज्यादा अनुभूत होती थी। जो दिखता भले न हो, लेकिन महसूस सुर के हर रेशे-रेशे में होता था।
याद करें फिल्म ‘मौसम’ का वह यादगार गीत ‘दिल ढूंढता है फिर वही फुरसत के रात दिन।‘ गुलजार के इन लाजवाब बोलों पर भूपिंदर की आवाज ने ऐसा पानी चढ़ाया है कि सिर्फ गीत सुनकर ही किसी पहाड़ की गुनगुनी धूप को विदाउट एसी कमरे में भी सहजता से अनुभव किया जा सकता है। हालांकि इस गीत में गान साम्राज्ञी लताजी का स्वर भी है, लेकिन बिंदास मोहब्बत के गुनगुनेपन को जिस तरह भूपिंदर अभिव्यक्त करते हैं, वह अपने आप में लाजवाब है।

 

इसी तरह फिल्म ‘प्रेम पुजारी’ का वो मस्तीभरा गीत’ गम पे धूल डालो, कहकहा लगा लो..’, स्व. नीरज के इस गीत में सुस्ती को नीलाम करने का पैगाम है। इस डुएट में भूपिंदर हरफनमौला गायक किशोर कुमार के साथ हैं। लेकिन किशोर दा की चुहलबाजी में भूपिंदर की आवाज ‘मस्ती उधार देने से’ नहीं चूकती। वो किशोर दा के साथ नाॅन स्ट्राइकर एंड से भी पूरी ताकत से सुरों की बैटिंग करते हैं। क्रिकेट की भाषा में ही कहें तो भूपिंदर ने रनों का रिकाॅर्ड नहीं बनाया, लेकिन जब रन बनाए, सीधे सुरों की सेंचुरी ही मारी है। इसमें शायद ही किसी को शक हो। मैंने भूपिंदर को जब जब सुना तो लगा कि उनकी आवाज प्लेटफार्म पर आती उस ट्रेन की तरह है, जो हवा की तरह छूकर बिना रूके अगले स्टेशन की तरफ उसी बेतकल्लुफी से निकल जाती है। पीछे रह जाती है वो सरसराहट, जो भूपिंदर की कभी खामोश न होने वाले स्वर की आत्मा है। उनके कई अलबम भी आए। आज जिस तरह का संगीत‍ बिकता है, बजता है, उसमें शायद भूपिंदर जैसी स्वर्गिक आवाज के लिए जगह न हो, लेकिन जो सुगम संगीत के सच्चे प्रेमी हैं, उनके लिए भूपिंदरसिंह किसी मंदिर में महकते अनमिट सुवास की तरह हैं। प्रख्यात गीतकार गुलजार ने कभी भूपिंदर की इस आवाज के बारे में कहा था कि ‘अगर मेरा बस चले तो मैं भूपिंदर की आवाज को ताबीज बनाकर पहन लूं।‘ भूपिंदर की अप्रतिम आवाज को उनके चाहने वालों ने तो दिल में तो सालों से बसा रखा है। यकीन मानिए कि जब तक सुरों की दुनिया रहेगी, भूपिंदर भी अपनी दिल की गहराइयों से आती आवाज के साथ हर अकेले और दुकेलेपन में भी हमारे साथ रहेंगे। उन्हें हार्दिक श्रद्धां जलि।

लेखक : वरिष्ठ संपादक
‘राइट क्लिक’ ( ‘सुबह सवेरे’ में प्रकाशित)

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