Guru Gobind Singh Jayanti: सिक्खों के छ्ठें गुरु हरगोबिंद सिंह की जयंती

Guru Gobind Singh Jayanti (har gobind sahib ji) सिक्खों के छ्ठे गुरु थे। नानक शाही पंचांग के अनुसार इस वर्ष गुरु हरगोबिंद जी की जयंती 15 जून को मनाई जाएगी। गुरु हरगोबिंद सिंहजी ने ही सिख समुदाय को सेना के रूप में संगठित होने के लिए प्रेरित किया था।

सिखों के गुरु के रूप में Guru Gobind Singh Jayanti कार्यकाल सबसे अधिक था। उन्होंने 37 साल, 9 महीने, 3 दिन तक यह जिम्मेदारी संभाली थी। guru hargobind birth place | गुरु हरगोबिंद सिंह का जन्म अमृतसर के वडाली गांव में माता गंगा और पिता गुरु अर्जुन देव के यहां 21 आषाढ़ (वदी 6) संवत 1652 को हुआ था।

महज 11 साल की उम्र में ही मिल गई गुरु की उपाधि | Guru Gobind Singh Jayanti

गुरु हरगोबिंद सिंह को महज 11 साल की उम्र में गुरु की उपाधि मिल गई। उनको यह उपाधि अपने पिता और सिखों के 5वें गुरु अर्जुन देव से मिली थी। मुगल शासक जहांगीर के आदेश पर गुरु अर्जुन सिंह को फांसी दे दी गई। फिर गुरु हरगोबिंद सिंह ने सिखों का नेतृत्व संभाला। जीते जी अपने पिता के निर्देशानुसार उन्होंने सिख पंथ को एक योद्धा के चरित्र के रूप में स्थापित किया।

धारण कीं दो तलवारें | two swords

शांति और ध्यान में रहने वाली कौम को क्रांतिकारी रूप प्रदान करने के लिए हर गोबिंद सिंह ने दो तलवारें धारण करनी शुरू कीं। उनकी एक तलवार का नाम पिरी और एक का नाम मिरी था। कहा जाता है कि पिरी को उन्होंने आध्यात्मिक शक्ति के लिए और सैन्य शक्ति के लिए मिरी को धारण किया था।

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जहांगीर को सपने में मिला था रिहाई का आदेश

सिखों द्वारा बगावत किए जाने के बाद मुगल बादशाह जहांगीर ने उन्हें कैद में डाल दिया था। गुरु हरगोबिंद सिंहजी 52 राजाओं समेत ग्वालियर के किले में बंदी बनाए गए थे। इन्हें बंदी बनाने के बाद से जहांगीर मानसिक रूप से परेशान रहने लगा। इसी दौरान मुगल शहंशाहों के किसी करीबी फकीर ने उसे सलाह दी कि वह गुरु हरगोबिंद साहब को तत्काल रिहा कर दें। यह भी कहा जाता है कि जहांगीर को स्वप्न में किसी फकीर से गुरुजी को आजाद करने का आदेश मिला था। जब गुरु हरगोबिंद को कैद से रिहा किया जाने लगा तो वह अपने साथ कैद हुए 52 राजाओं को भी रिहा करने के लिए अड़ गए।

अत्याचारों को रोकने के लिए बढ़ाए कदम | battles of guru hargobind sahib ji

जहांगीर की मृत्यु (सन् 1627) के बाद मुगलों के नए बादशाह बने शाहजहां ने सिखों पर और अधिक कहर ढहाना शुरू कर दिया। उस समय अपने धर्म की रक्षा के लिए गुरु हरगोविंद सिंहजी को आगे आना पड़ा। उन्होंने पूर्व में स्थापित आदर्शों में यह आदर्श भी जोड़ा कि सिखों को यह अधिकार है कि अगर जरूरत हो तो वे तलवार उठाकर भी अपने धर्म की रक्षा कर सकते हैं।

12 वर्षों तक रहे कैद

मुगल शासन काल में गुरु हरगोविंद सिंहजी को 12 वर्ष तक कैद में डाल दिया गया। रिहा होने के बाद ही उन्होंने शाहजहां के खिलाफ बगावत शुरू कर दी और सन् 1628 में अमृतसर के निकट युद्ध में मुगल फौज को हरा दिया। अंत में उन्हें कश्मीर के पहाड़ों में जाकर शरण लेनी पड़ी। यहां रहते हुए सन् 1644 में पंजाब के कीरतपुर में उनकी मृत्यु हो गई। सिखों के गुरु के रूप में उनका कार्यकाल सबसे अधिक था। उन्होंने 37 साल, 9 महीने, 3 दिन तक अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन किया।

तीन पत्नियां थीं गुरु हरगोविंदजी की

गुरु हरगोविंद सिंह ने 3 विवाह किए थे। दामोदरी, नानकी और महादेवी उनकी 3 पत्नियां थीं। तीनों पत्नियों से उनकी कई संतानें थीं। उनके जीवित रहते ही उनके दो बड़े पुत्र स्वर्गवासी हो गए। उनकी पत्नी नानकी के पुत्र तेग बहादुर सिखों के नौवें गुरु बने। गुरु हरगोबिंद सिंह ने अपने पोते गुरु हर राय को सिखों का सातवां गुरु बनाया।

अकाल तख्त का किया निर्माण

अपने कार्यकाल में ही सिखों के मामलों के फैसले के लिए अकाल तख्त का निर्माण किया। सिखों की यह अदालत आज भी अमृतसर में हरमिंदर साहिब के सामने स्थित है।

दाता बंदी छोड़ नाम से बुलाया

गुरु हरगोबिंद सिंह के कहने पर 52 राजाओं को भी जहांगीर की कैद से रिहाई मिली थी। जहांगीर एक साथ 52 राजाओं को रिहा नहीं करना चाहता था। इसलिए उसने एक कूटनीति बनाई और हुक्म दिया कि जितने राजा गुरु हरगोबिंद साहब का दामन थाम कर बाहर आ सकेंगे, वो रिहा कर दिए जाएंगे। इसके लिए एक युक्ति निकाली गई कि जेल से रिहा होने पर नया कपड़ा पहनने के नाम पर 52 कलियों का अंगरखा सिलवाया जाए। गुरु जी ने उस अंगरखे को पहना, और हर कली के छोर को 52 राजाओं ने थाम लिया और इस तरह सब राजा रिहा हो गए। हरगोबिंद जी की सूझ-बूझ की वजह से उन्हें ‘दाता बंदी छोड़’ के नाम से बुलाया गया।

सभी 10 गुरुओं का प्रकाश और शहीदी दिवस

  • गुरु नानक देव जी महाराज (15 अप्रैल 1469 से 22 सितंबर 1539)
  • गुरु अंगद देव जी महाराज (31 मार्च 1504 से 29 मार्च 1552)
  • गुरु अमरदास जी महाराज (5 मई 1479 से एक सितंबर 1574)
  • गुरु रामदास जी महाराज (24 सितंबर 1534 से एक सितंबर 1581)
  • गुरु अरजन देव जी महाराज (15 अप्रैल 1563 से 30 मई 1606)
  • गुर हर गोबिंद जी महाराज (19 जून 1595 से 28 फरवरी 1644)
  • गुरु हरि राय जी महाराज (16 जनवरी 1630 से 6 अक्टूबर 1661)
  • गुरु हरि किशन जी महाराज(7 जुलाई 1656 से 30 मार्च 1664)
  • गुरु तेग बहादुर जी महाराज (एक अप्रैल 1621 से 11 नवंबर 1675)
  • गुरु गोविंद सिंह जी महाराज(22 दिसंबर 1666 से 7 अक्टूबर 1708)

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