पहला दिन: रामचरित मानस की चौपाईयां अर्थ सहित पढ़ें रोज, Ramcharit Manas पढ़ने से पहले रखें इन बातों का ध्यान

Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित 'श्रीरामचरितमानस' की चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आज से आपके लिए लेकर आ रही हैं।

Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 7 चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आज से आपके लिए लेकर आ रही हैं। आज से हम आपके लिए रोजाना गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 7 चौपाई लेकर आते रहेंगे। आज से नववर्ष की शुरुआत हो रही हैं। इसलिए उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) एक नई पहल कर रही हैं जिसके माध्यम से आप सभी को संपूर्ण ‘श्रीरामचरितमानस’ पढ़ने का लाभ मिलें।

नववर्ष पर रामायण (Ramayana) ग्रंथ का पाठ करने से अनेक कामनाएं पूरी होने के साथ जन्म जन्मांतरों के पाप से मुक्ति, भय, रोग आदि सभी दूर हो जाते हैं। रामायण का पाठ (Ramayana ka Paath) करने मात्र से धन की कामना रखने वाले को धन की प्राप्ति होती है। अगर आप संपूर्ण रामायण (Complete Ramayana) का पाठ नहीं कर सकते हैं आप हमारे साथ जुड़कर रोज की 7-7 चौपाई (Chaupai) का पाठ कर सकते हैं।

कुछ ऐसी चौपाईयां है श्रीरामचरित मानस (Shri Ramcharit Manas) में जिनके पाठ से मनुष्य जीवन में आने वाली अनेक समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। वैसे तो संपूर्ण रामायण का पाठ करने से हर तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है, आप चाहे तो हमारे साथ जुड़कर रोजाना पाठ करें और संपूर्ण रामायण का पुण्य फल भी कमाएं। आज से हम गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ रामायण के प्रथम सोपान बालकांड की शुरुआत करेंगे।

आज श्रीरामचरित मानस की 7 चौपाईयां | Today’s 7 Chaupais of Ramcharit Manas

वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ ॥1॥

भावार्थ: श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी ग्रन्थारम्भ के लिए सबसे पहले श्रीगणेशजी और सरस्वतीजी की वन्दना करते हुए कहते हैं कि जो समस्त वर्णों, अर्थ-समूहों, रसों और छन्दों के तथा सब प्रकार के मङ्गलों के कर्त्ता हैं, उन श्रीगणेशजी और श्रीसरस्वतीजी को मैं प्रणाम करता हूँ ।।1।।

भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्‌ ॥2॥

भावार्थ: फिर मैं उन भवानी (पार्वती) और श्रीशंकरजी (महादेवजी) की वन्दना करता हूँ, जो श्रद्धा और विश्वासस्वरूप (विश्वास की साक्षात् मूर्ति) हैं और जिनकी कृपा के बिना सिद्ध पुरुष भी अपने हृदय में स्थित ईश्वर को नहीं देख पाते ।।2।।

वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकररूपिणम्‌।
यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते॥3॥

भावार्थ: अब मैं अपने श्रीगुरुदेवजी की वन्दना करता हूँ कि जो श्रीगुरुनारायण ज्ञानमय, नित्य, (अजर, अमर, अविनाशी) शंकरस्वरूप हैं और जिनके सहारे वक्र (टेढ़ा) चन्द्रमा भी सब स्थानों में वन्दनीय होता है। यहाँ पर श्रीगोस्वामीजी वक्र चन्द्रमा का उदाहरण इसलिए देते हैं कि जैसे दूज का चन्द्रमा यद्यपि टेढ़ा होता है तथापि शिवजी के मस्तक पर धारण करने से शिवजी के साथ ही वह भी पूजनीय हो जाता है, इसी प्रकार यद्यपि यह मेरी रचना टेढ़ी अवश्य होगी, किन्तु गुरुदेव का आश्रय पाने से सम्मानित होगी ।।3।।

सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणौ।
वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कवीश्वरकपीश्वरौ ॥4॥

भावार्थ: फिर मैं उन आदिकवि महर्षि वाल्मीकि और कपीश्वर श्रीहनुमानजी की वंदना करता हूं जो सर्वदा ही श्रीसीताजी और श्रीरामचन्द्रजी के गुण-ग्रामरूपी पवित्र वन में विहार करनेवाले अत्यन्त शुद्ध, निर्मल और विज्ञानमय हैं ।।4।।

उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्‌।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्‌ ॥5॥

भावार्थ: फिर मैं उन जगत्-जननी श्रीरामचन्द्रजी की वल्लभा (प्रिया) श्रीसीताजी के चरण-कमलों में प्रणाम करता है, जो संसार की उत्पत्ति, स्थिति, संहार करनेवाली और समस्त क्लेशों को दूरकर सब प्रकार कल्याण करने वाली हैं ।।5।।

यन्मायावशवर्ति विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा
यत्सत्त्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः।
यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां
वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम्‌ ॥6॥

भावार्थ: फिर मैं उन श्रीराम नाम से युक्त ईश्वर श्रीरामचन्द्रजी को प्रणाम करता हूँ, जिनकी माया से समस्त जगत् सहित ब्रह्मादिक देवता भी वशीभूत हो रहे हैं और जिनकी सत्ता से ही यह समान प्रमाणित होने वाला) जगत् भी सत्य-सा प्रतीत हो रहा है और ऐसे संसार-सागर को पार करने के लिए जिनके चरण-कमल ही नौकारूप हैं तथा जो समस्त मिथ्यारूप (रस्सी में सर्प के कारणों से परे और दुःख को हरने वाले हैं ।।6।।

नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद्
रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।
स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा
भाषानिबन्धमतिमंजुलमातनोति ॥7॥

भावार्थ: अनेक पुराणों, वेदों और शास्त्रों से सम्मत जो श्रीवाल्मीकीय रामायण है, उसका सार लेकर और कहीं-कहीं इसी प्रकार अन्य ग्रन्थों और अनुभवों से सार वस्तु लेकर मैं (तुलसीदास) अपने अन्तःकरण के सुख के लिए श्रीरामचन्द्रजी के कथारूप इस अत्यन्त सुन्दर ग्रन्थ की रचना करता हूँ ।।7।।

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श्रीरामचरित मानस कितने कांडों में विभक्त हैं? – Shri Ramcharit Manas

  • श्रीरामचरितमानस को पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी ने सात काण्डों में विभक्त किया है। इन सात काण्डों के नाम हैं इस प्रकार हैं।
  • बालकाण्ड: रामचरितमानस का आरंभ बालकांड से होता है। इस कांड में श्री राम के जन्म और बाल्यकाल की कथा वर्णित है। शंकर-पार्वती का विवाह भी इसकी अन्य प्रमुख घटना है। इसमें कुल 361 दोहे हैं। बालकांड रामचरितमानस का सबसे बड़ा काण्ड है।
  • अयोध्याकाण्ड: अयोध्या की कथा का वर्णन अयोध्या काण्ड के अंतर्गत हुआ है। राम का राज्याभिषेक, कैकेयी का कोपभवन जाना और वरदान के रूप में राजा दशरथ से भरत के लिए राजगद्दी और राम को वनवास माँगना और दशरथ के प्राण छूटना आदि घटनाएँ प्रमुख हैं। इस कांड में 326 दोहे हैं।
  • अरण्यकाण्ड: राम का सीता लक्ष्मण सहित वन-गमन मारीचि-वध और सीता-हरण की कथा का वर्णन अरण्यकांड में हुआ है। इसमें 46 दोहे हैं।
  • किष्किन्धाकाण्ड: राम का सीता को खोजते हुए किष्किंधा पर्वत पर आना, श्री हनुमानजी का मिलना, सुग्रीव से मित्रता और बालि का वध इत्यादि घटनाएँ किष्किंधा काण्ड में वर्णित हैं। इसमें 30 दोहे हैं। किष्किंधाकांड रामचरितमानस का सबसे छोटा काण्ड है।
  • सुन्दरकाण्ड: सुंदरकांड का रामायण में विशेष महत्व है। इस कांड में सीता की खोज में हनुमानजी का समुद्र लाँघ कर लंका को जाना, सीताजी से मिलना और लंकादहन की कथा का वर्णन है।अशोक वाटिका सुंदर पर्वत के परिक्षेत्र में थी जहाँ हनुमानजी की सीताजी से भेंट होती है। इसलिए इस काण्ड का नाम सुन्दरकाण्ड है। सुंदरकांड सब प्रकार से सुंदर है। इसके पाठ का विशेष पुण्य है और इससे हनुमान जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इसमें कुल 60 दोहे हैं।
  • लंकाकाण्ड (युद्धकाण्ड): सेतुबंध करते हुए राम का अपनी वानरी सेना के साथ लंका को प्रस्थान, रावण-वध और फिर सीता को लेकर लौटना यह सब कथा लंकाकाण्ड के अंतर्गत आती है। इसमें कुल 121 दोहे हैं।वाल्मीकीय रामायण में लंकाकांड का नाम युद्धकांड है।
  • उत्तरकाण्ड: जीवनोपयोगी प्रश्नों के उत्तर इस उत्तरकाण्ड में मिलते हैं। इसका काकभुशुण्डि-गरुड़ संवाद विशेष है। इस कांड में 130 दोहे हैं। इसमें श्रीराम का चौदह वर्ष के वनवास के उपरांत परिवार वालों और अवधवासियों से पुनः मिलने का प्रसंग बहुत मार्मिक है।उत्तरकांड के साथ ही रामचरितमानस का समापन हो जाता है।

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श्रीरामचरित मानस का पाठ करने से पहले रखें इस बात का ध्यान

श्री रामचरितमानस (Shri Ramcharit Manas) का पाठ करने से पहले हमें श्री तुलसीदासजी, श्री वाल्मीकिजी, श्री शिवजी तथा श्रीहनुमानजी का आह्नान करना चाहिए तथा पूजन करने के बाद तीनो भाइयों सहित श्री सीतारामजी का आह्नान, षोडशोपचार ( अर्थात सोलह वस्तुओं का अर्पण करते हुए पूजन करना चाहिए लेकिन नित्य प्रति का पूजन पंचोपचार गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से संपन्न किया जा सकता है ) पूजन और ध्यान करना चाहिये। उसके उपरांत ही पाठ का आरम्भ करना चाहिये।

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Deepak Vishwakarma

दीपक विश्वकर्मा एक अनुभवी समाचार संपादक और लेखक हैं, जिनके पास 13 वर्षों का गहरा अनुभव है। उन्होंने पत्रकारिता के विभिन्न पहलुओं में कार्य किया है, जिसमें समाचार लेखन, संपादन और कंटेंट निर्माण प्रमुख हैं। दीपक ने कई प्रमुख मीडिया संस्थानों में काम करते हुए संपादकीय टीमों का नेतृत्व किया और सटीक, निष्पक्ष, और प्रभावशाली खबरें तैयार कीं। वे अपनी लेखनी में समाजिक मुद्दों, राजनीति, और संस्कृति पर गहरी समझ और दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। दीपक का उद्देश्य हमेशा गुणवत्तापूर्ण और प्रामाणिक सामग्री का निर्माण करना रहा है, जिससे लोग सच्ची और सूचनात्मक खबरें प्राप्त कर सकें। वह हमेशा मीडिया की बदलती दुनिया में नई तकनीकों और ट्रेंड्स के साथ अपने काम को बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत रहते हैं।

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