रामचरित मानस की चौपाईयां अर्थ सहित पढ़ें रोज, आज बाइसवां दिन

Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित 'श्रीरामचरितमानस' चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आपके लिए लेकर आ रही हैं।

Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 7 चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आपके लिए लेकर आ रही हैं। पिछले 21 दिनों से लगातार हम आपके लिए गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 7 चौपाई लेकर आ रहे हैं। उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) एक नई पहल कर रही हैं जिसके माध्यम से आप सभी को संपूर्ण ‘श्रीरामचरितमानस’ पढ़ने का लाभ मिलें।

श्रीरामचरित मानस (Shri Ramcharit Manas) में जिनके पाठ से मनुष्य जीवन में आने वाली अनेक समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। वैसे तो संपूर्ण रामायण का पाठ करने से हर तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है, आप चाहे तो हमारे साथ जुड़कर रोजाना पाठ करें और संपूर्ण रामायण का पुण्य फल भी कमाएं। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ रामायण के प्रथम सोपान बालकांड के दोहा और चौपाई और भावार्थ

आज श्रीरामचरित मानस की 7 चौपाईयां | Today 7 Chaupais of Ramcharit Manas

दोहा
प्रभु तरु तर कपि डार पर ते किए आपु समान।
तुलसी कहूँ न राम से साहिब सील निधान॥29 क॥

भावार्थ: श्रीतुलसीदासजी कहते हैं कि यदि वे प्रभु ऐसे न होते तो क्या स्वयं वे तो वृक्ष के नीचे रहते और उन बन्दरों को जो कि, हर समय वृक्ष की डालों पर ही चढ़े रहते हैं उनको अपने समान बनाते, इसलिए उन श्रीरामचन्द्रजी महाराज से बढ़कर शीलनिधान स्वामी कोई नहीं है।।29(क)।।

राम निकाईं रावरी है सबही को नीक।
जौं यह साँची है सदा तौ नीको तुलसीक॥29 ख॥

भावार्थ: सो हे श्रीरामचन्द्रजी महाराज! आप की यह निकाई हर किसी के लिये अच्छी है और यदि यह सर्वदा सत्य है तो मुझ तुलसीदास के लिए भी अच्छी ही होगी।।29 (ख)।।

एहि बिधि निज गुन दोष कहि सबहि बहुरि सिरु नाइ।
बरनउँ रघुबर बिसद जसु सुनि कलि कलुष नसाइ॥29 ग॥

भावार्थ: इस प्रकार अपने गुण और दोष का वर्णनकर और फिर सबको सिर झुकाकर मैं श्रीरामचन्द्रजी के उस निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जिसको सुनने से कलियुग में पापों का सर्वथा ही नाश हो जाता है।।29(ग) ।।

चौपाई
जागबलिक जो कथा सुहाई। भरद्वाज मुनिबरहि सुनाई॥
कहिहउँ सोइ संबाद बखानी। सुनहुँ सकल सज्जन सुखु मानी॥1॥

भावार्थ: याज्ञवल्क्य मुनि ने जो सुहावनी कथा भरद्वाज मुनि को सुनाई थी। वही संवाद मैं वर्णन करूंगा, हे सज्जनों! आप सब मन में सुख मानकर सुनो।

संभु कीन्ह यह चरित सुहावा। बहुरि कृपा करि उमहि सुनावा॥
सोइ सिव कागभुसुंडिहि दीन्हा। राम भगत अधिकारी चीन्हा॥2॥

भावार्थ: इस सुन्दर चरित्र की (सर्वप्रथम) श्रीशिवजी ने रचना की थी, फिर कृपा करके उन्होंने पार्वतीजी को सुनाया। फिर उसी को शिवजी ने काकभुशुण्डिजी को श्रीरामचन्द्रजी का भक्त व अधिकारी जानकर सुनाया है।

तेहि सन जागबलिक पुनि पावा। तिन्ह पुनि भरद्वाज प्रति गावा॥
ते श्रोता बकता समसीला। सवँदरसी जानहिं हरिलीला॥3॥

भावार्थ: फिर उसी को ‘तेहि सन’ अर्थात् काकभुशुण्डि से याज्ञवल्क्य मुनि ने पाया और उन्होंने अर्थात् याज्ञवल्क्य मुनि ने श्रीभरद्वाज मुनि से कहा। वे दोनों श्रोता और वक्ता समान बुद्धिवाले, समदर्शी और भगवान् की लीला को जाननेवाले थे।

जानहिं तीनि काल निज ग्याना। करतल गत आमलक समाना॥
औरउ जे हरिभगत सुजाना। कहहिं सुनहिं समुझहिं बिधि नाना॥4॥

भावार्थ: उनका ज्ञान इतना बढ़ा-चढ़ा था कि वे भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों काल की बातों को हथेली में रखे हुए आँवले की भाँति जानते थे। इनके अतिरिक्त और भी जो भगवान् के भक्त और अच्छे ज्ञानी हैं तथा जो एक-दूसरे से भगवान् की लीला को आपस में अनेक प्रकार से कहते, सुनते और समझते हैं, वे भी ज्ञानी और भक्त हैं।

Deepak Vishwakarma

दीपक विश्वकर्मा एक अनुभवी समाचार संपादक और लेखक हैं, जिनके पास 13 वर्षों का गहरा अनुभव है। उन्होंने पत्रकारिता के विभिन्न पहलुओं में कार्य किया है, जिसमें समाचार लेखन, संपादन और कंटेंट निर्माण प्रमुख हैं। दीपक ने कई प्रमुख मीडिया संस्थानों में काम करते हुए संपादकीय टीमों का नेतृत्व किया और सटीक, निष्पक्ष, और प्रभावशाली खबरें तैयार कीं। वे अपनी लेखनी में समाजिक मुद्दों, राजनीति, और संस्कृति पर गहरी समझ और दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। दीपक का उद्देश्य हमेशा गुणवत्तापूर्ण और प्रामाणिक सामग्री का निर्माण करना रहा है, जिससे लोग सच्ची और सूचनात्मक खबरें प्राप्त कर सकें। वह हमेशा मीडिया की बदलती दुनिया में नई तकनीकों और ट्रेंड्स के साथ अपने काम को बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत रहते हैं।

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