तीसरा दिन: रामचरित मानस की चौपाईयां अर्थ सहित पढ़ें रोज, पाठ करने से पहले रखें इन बातों का ध्यान
Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित 'श्रीरामचरितमानस' चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आपके लिए लेकर आ रही हैं।
Ramcharit Manas: भक्तशिरोमणि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 8 चौपाई अर्थ सहित उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) आज से आपके लिए लेकर आ रही हैं। आज से हम आपके लिए रोजाना गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ की 8 चौपाई लेकर आते रहेंगे। आज से नववर्ष की शुरुआत हो रही हैं। इसलिए उज्जवल प्रदेश (ujjwalpradesh.com) एक नई पहल कर रही हैं जिसके माध्यम से आप सभी को संपूर्ण ‘श्रीरामचरितमानस’ पढ़ने का लाभ मिलें।
श्रीरामचरित मानस (Shri Ramcharit Manas) में जिनके पाठ से मनुष्य जीवन में आने वाली अनेक समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। वैसे तो संपूर्ण रामायण का पाठ करने से हर तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है, आप चाहे तो हमारे साथ जुड़कर रोजाना पाठ करें और संपूर्ण रामायण का पुण्य फल भी कमाएं। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’ रामायण के प्रथम सोपान बालकांड के दोहा और चौपाई और भावार्थ।
आज श्रीरामचरित मानस की 8 चौपाईयां | Today’s 8 Chaupais of Ramcharit Manas
दोहा
जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान।
कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान॥1॥
भावार्थ: जैसे सुजान साधक अपनी साधना को सिद्ध करने के लिए नेत्रों में सिद्धांजन को लगाकर वन और पृथ्वी-तल के अनेक कौतुक देखते हैं, ऐसे ही जो गुरुदेव के चरणारविन्दों की धूलि को हृदय के नेत्रों में लगाकर साधन करता है, उसे नाना प्रकार के कौतुक से भरी सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं।।1।।
चौपाई
गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन। नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन॥
तेहिं करि बिमल बिबेक बिलोचन। बरनउँ राम चरित भव मोचन॥1॥
भावार्थ: श्रीगुरुदेव के चरण-कमलों की रज स्वच्छ नयनामृत अंजन के समान है और दृष्टिदोषनिवारक है। अतः उसी से मैं अपने ज्ञानरूपी नेत्रों को स्वच्छ करके आवागमन से मुक्त करने वाले श्रीरामचन्द्रजी के पवित्र यश का वर्णन करता हूँ। ॥1॥
बंदउँ प्रथम महीसुर चरना। मोह जनित संसय सब हरना॥
सुजन समाज सकल गुन खानी। करउँ प्रनाम सप्रेम सुबानी॥2॥
भावार्थ: सबसे पहले पृथ्वी के देवतारूप ब्राह्मणों के चरणों की मैं वन्दना करता हूँ, जो मोहजनित समस्त शंकाओं का समाधान करनेवाले हैं। साथ ही सत्पुरुषों के उस समाज को भी जो सब गुणों की खान है, मैं प्रेमसहित सुन्दर वाणी से प्रणाम करता हूँ। ॥2॥
साधु चरित सुभ चरित कपासू। निरस बिसद गुनमय फल जासू॥
जो सहि दुख परछिद्र दुरावा। बंदनीय जेहिं जग जस पावा॥3॥
भावार्थ: यद्यपि साधु-चरित (सत्पुरुषों का चरित्र) कपास के समान नीरस अवश्य है; पर उसका फल बड़ा ही गुण देने वाला है; क्योंकि सन्तजन दुःख सहकर भी पराये दोष को छिपाते हैं, इसी से वे हमारे लिए वंदनीय और संसार में यश पाने वाले हैं। ॥3॥
मुद मंगलमय संत समाजू। जो जग जंगम तीरथराजू॥
राम भक्ति जहँ सुरसरि धारा। सरसइ ब्रह्म बिचार प्रचारा ॥4॥
भावार्थ: उन सन्तों का समाज आनन्दमय और शुभप्रद है, जो संसार में चलते-फिरते तीर्थराज प्रयाग के समान पवित्र हैं; क्योंकि उनके मध्य में हर समय राम-भक्तिरूपी गंगा की धारा बहा करती है और उनका वही ब्रह्मविचार का प्रचार, सरस्वतीजी का प्रवाह है। ॥4॥
बिधि निषेधमय कलिमल हरनी। करम कथा रबिनंदनि बरनी॥
हरि हर कथा बिराजति बेनी। सुनत सकल मुद मंगल देनी॥5॥
भावार्थ: उसमें विधि (ग्रहण करने के योग्य) और निषेध (त्याग करने योग्य) की जो कथा है, वही कलियुग के पापों को नाश करनेवाली यमुना सहित त्रिवेणी का संगम है। जहाँ विष्णु भगवान् और श्रीमहादेवजी की कथा केवल श्रवण मात्र से आनन्द और मंगल देनेवाली है। ॥5॥
बटु बिस्वास अचल निज धरमा। तीरथराज समाज सुकरमा॥
सबहि सुलभ सब दिन सब देसा। सेवत सादर समन कलेसा॥6॥
भावार्थ: जहाँ अपने धर्म पर अटल रहना ही विश्वासरूपी अक्षय वट है और जो तीर्थराज अच्छे कर्मों का ही एक समाज है। वह सबको सब दिन में और सब देशों में आदर सहित सेवन करने से कष्टों को शान्त कर देता है। ॥6॥
अकथ अलौकिक तीरथराऊ। देह सद्य फल प्रगट प्रभाऊ॥7॥
भावार्थ: वह अकथनीय महिमा वाला अलौकिक साधु समाजरूपी तीर्थराज सर्वदा ही प्रभावयुक्त फल को प्रत्यक्ष देने वाला है। ॥7॥
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श्रीरामचरित मानस कितने कांडों में विभक्त हैं?
- श्रीरामचरितमानस को पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी ने सात काण्डों में विभक्त किया है। इन सात काण्डों के नाम हैं इस प्रकार हैं।
- बालकाण्ड: रामचरितमानस का आरंभ बालकांड से होता है। इस कांड में श्री राम के जन्म और बाल्यकाल की कथा वर्णित है। शंकर-पार्वती का विवाह भी इसकी अन्य प्रमुख घटना है। इसमें कुल 361 दोहे हैं। बालकांड रामचरितमानस का सबसे बड़ा काण्ड है।
- अयोध्याकाण्ड: अयोध्या की कथा का वर्णन अयोध्या काण्ड के अंतर्गत हुआ है। राम का राज्याभिषेक, कैकेयी का कोपभवन जाना और वरदान के रूप में राजा दशरथ से भरत के लिए राजगद्दी और राम को वनवास माँगना और दशरथ के प्राण छूटना आदि घटनाएँ प्रमुख हैं। इस कांड में 326 दोहे हैं।
- अरण्यकाण्ड: राम का सीता लक्ष्मण सहित वन-गमन मारीचि-वध और सीता-हरण की कथा का वर्णन अरण्यकांड में हुआ है। इसमें 46 दोहे हैं।
- किष्किन्धाकाण्ड: राम का सीता को खोजते हुए किष्किंधा पर्वत पर आना, श्री हनुमानजी का मिलना, सुग्रीव से मित्रता और बालि का वध इत्यादि घटनाएँ किष्किंधा काण्ड में वर्णित हैं। इसमें 30 दोहे हैं। किष्किंधाकांड रामचरितमानस का सबसे छोटा काण्ड है।
- सुन्दरकाण्ड: सुंदरकांड का रामायण में विशेष महत्व है। इस कांड में सीता की खोज में हनुमानजी का समुद्र लाँघ कर लंका को जाना, सीताजी से मिलना और लंकादहन की कथा का वर्णन है।अशोक वाटिका सुंदर पर्वत के परिक्षेत्र में थी जहाँ हनुमानजी की सीताजी से भेंट होती है। इसलिए इस काण्ड का नाम सुन्दरकाण्ड है। सुंदरकांड सब प्रकार से सुंदर है। इसके पाठ का विशेष पुण्य है और इससे हनुमान जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इसमें कुल 60 दोहे हैं।
- लंकाकाण्ड (युद्धकाण्ड): सेतुबंध करते हुए राम का अपनी वानरी सेना के साथ लंका को प्रस्थान, रावण-वध और फिर सीता को लेकर लौटना यह सब कथा लंकाकाण्ड के अंतर्गत आती है। इसमें कुल 121 दोहे हैं।वाल्मीकीय रामायण में लंकाकांड का नाम युद्धकांड है।
- उत्तरकाण्ड: जीवनोपयोगी प्रश्नों के उत्तर इस उत्तरकाण्ड में मिलते हैं। इसका काकभुशुण्डि-गरुड़ संवाद विशेष है। इस कांड में 130 दोहे हैं। इसमें श्रीराम का चौदह वर्ष के वनवास के उपरांत परिवार वालों और अवधवासियों से पुनः मिलने का प्रसंग बहुत मार्मिक है।उत्तरकांड के साथ ही रामचरितमानस का समापन हो जाता है।
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श्रीरामचरित मानस का पाठ करने से पहले रखें इस बात का ध्यान
श्री रामचरितमानस (Shri Ramcharit Manas) का पाठ करने से पहले हमें श्री तुलसीदासजी, श्री वाल्मीकिजी, श्री शिवजी तथा श्रीहनुमानजी का आह्नान करना चाहिए तथा पूजन करने के बाद तीनो भाइयों सहित श्री सीतारामजी का आह्नान, षोडशोपचार ( अर्थात सोलह वस्तुओं का अर्पण करते हुए पूजन करना चाहिए लेकिन नित्य प्रति का पूजन पंचोपचार गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से संपन्न किया जा सकता है ) पूजन और ध्यान करना चाहिये। उसके उपरांत ही पाठ का आरम्भ करना चाहिये।
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