जनादेश बनाम ईवीएमादेश: मरकडवाडी की ‘प्रोटेस्ट माॅकड्रिल’ में निहित सवाल
Editorial: अजय बोकिल
चुनाव नतीजे अगर पक्ष में हो तो जनादेश और विपरीत हों तो ईवीएमादेश बताने के नरेटिव का एक बेहद नाटकीय लेकिन चिंताजनक प्रसंग महाराष्ट्र के मरकडवाडी गांव में परिणामों को नकारकर फिर से मतपत्रों के जरिए चुनाव कराने की माॅकड्रिल का है। इससे चौंके प्रशासन ने हालांकि सख्ती के साथ इस मुहिम को फेल कर दिया, लेकिन आने वाले समय में हर नापसंद चुनाव परिणाम पर सवालिया निशान लगाकर इस तरह बैलेट पेपर से मतदान कराने की मांग की प्रवृत्ति जोर पकड़ सकती है। मरकडवाडी के ग्रामीणों का कहना है कि वहां भाजपा प्रत्याशी को जितने वोट मिले, वह संभव ही नहीं था, क्योंकि यह गांव राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार) का गढ़ है।
हालांकि यह चुनाव राकांपा (शरद) के उत्तमराव जानकर ने ही जीता, लेकिन सवाल इस बात पर उठाया गया कि हारे हुए भाजपा प्रत्याशी को भी इतने ज्यादा मत कैसे मिल गए? इसका दूसरा अर्थ यह है कि ईवीएम को मैनेज किया गया। लेकिन इसी के साथ यह सवाल भी नत्थी है कि जब ईवीएम को ‘मैनेज’ ही किया जाना था तो ‘पूरी तरह’ क्यों नहीं किया गया ताकि भाजपा प्रत्याशी राम सातपुते जीत ही जाते। मजे की बात यह है कि एक सुनियोजित राजनीतिक एजेंडे के तहत विजयी उम्मीदवार जानकर ने त्यागी मुद्रा में कहा कि यदि चुनाव आयोग मरकडवाडी में बैलेट पेपर से फिर से चुनाव कराने पर सहमत होता है तो मैं जीतकर भी विधायक पद से इस्तीफा देने को तैयार हूं। ( अगर सही में चुनाव नतीजे संदेहास्पद थे तो उन्हें सशर्त इस्तीफे की पेशकश करने के बजाए सीधे इस्तीफा दे देना था) इसी नरेटिव के तहत ग्रामीणों ने एक प्रस्ताव पारित कर गांव में मतपत्रों के जरिए फिर से वोटिंग का ऐलान कर दिया, जबकि चुनाव कराने का अधिकार सिर्फ निर्वाचन आयोग का है। कुल मिलाकर यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि हमे ईवीएम तो क्या चुनाव आयोग पर ही भरोसा नहीं है। इसी के तहत राकांपा नेता शरद पवार 8 दिसंबर को मरकडवाडी पहुंचे और ईवीएम पर संदेह दोहराया। उधर कांग्रेस ने मरकडवाडी में लोकतंत्र की शहादत बताकर इस ‘गांव की पवित्र मिट्टी’ दिल्ली में राजघाट में बापू की समाधि पर अर्पित करने का ऐलान किया। यह मिट्टी गांव से एकत्रित कर कांग्रेस नेता राहुल गांधी को सौंपी जाएगी।
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दरअसल मरकडवाडी सोलापुर जिले की मालशिरस विधानसभा सीट के अंतर्गत आने वाला आदिवासी बहुल गांव है। मालशिरस अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है। हाल में राज्य में हुए विस चुनाव में इस सीट पर राकांपा( शरद) के उम्मीदवार उत्तमराव जानकर ने जीत हासिल की थी। नतीजों से चौंके मरकडवाडी के लोगों ने दावा किया कि उन्होंने तो जानकर को वोट दिए थे। लेकिन ईवीएम के आंकडे बीजेपी प्रत्याशी को ज्यादा यानी 1003 वोट दिखा रहे हैं, जबकि राकांपा उम्मीदवार को 843 वोट। ये गलत है।
गांववालों का दावा था कि बीजेपी प्रत्याशी को 100-150 वोट से ज्यादा नहीं मिल सकते। लिहाजा उन्होंने स्थानीय प्रशासन से बैलट पेपर से फिर से मतदान की अपील की और कहा कि वो इसका खर्चा उठाने को तैयार हैं। साथ ही गांवावालों ने माॅक पोलिंग के लिए 3 दिसंबर की तारीख भी तय कर दी। इससे घबराए प्रशासन ने सख्ती करते हुए निषेधाज्ञा लागू कर दी। माॅक पोलिंग रोकी और दो सौ लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की।
मरकडवाडी की तर्ज पर अकोला जिले के दो गावों तुलजापुर और बेलतला गांव में भी ईवीएम नतीजों को खारिज करते हुए फिर से माॅक पोल की माॅक पोल की मांग उठी। हालांकि इस माॅक पोल में मत पत्रों की जगह ‘महायुति’ व ‘महाविकास आघाडी’ लिखी दो मतपेटियां रखी जानी थी। इस माॅक पोल की पहल एक स्थानीय समाचार पत्र समूहके मालिक ने की थी। यह भी एक ड्रामा ही था। प्रशासन ने उसे भी रूकवा दिया। लेकिन असंतोष के इन सुरों के बीच अगर कुछ सच्चाई है तो चुनाव आयोग को उस पर भी ध्यान देना चाहिए। क्योंकि चुनाव आयोग की सक्षमता, पारदर्शिता और प्रामाणिकता पर दूसरे कोणों से भी सवाल उठते रहे हैं। इसका जवाब भी चुनाव आयोग को ही देना होगा। ईवीएम को लेकर चुनाव आयोग पहले भी स्पष्टीकरण दे चुका है। लेकिन लगता है हमारे यहां ईवीएम अब मतदान की मशीन न होकर पराजित पक्ष के लिए हार के स्थायी ठीकरे के रूप में तब्दील होती जा रही है। मरकडवाडी की ही बात करें तो वहां राकांपा (शरद) के उत्तम जानकर ने भाजपा के राम सातपुते को कुल 13 हजार 147 वोटों से हराया था। जीत का यह अंतर काफी है।
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जानकर को ये वोट पूरे विधानसभा क्षेत्र से िमले थे। ऐसे में केवल मरकडवाडी गांव के मतदान को मुद्दा बनाकर माॅक पोलिंग करवाने की बात गले नहीं उतरती। इस बीच चुनाव नतीजो से शुरू में हताशा में डूबे शरद पवार भी मरकडवाडी पहुंचे और उन्होंने कांग्रेस की तर्ज पर चुनाव ईवीएम के बजाए बैलट पेपर से कराने की मांग दोहराई। उन्होंने कहा कि जब दुनिया के बाकी लोकतांत्रिक देशों में मत पत्रों के जरिए मतदान हो रहा है तो भारत में क्या दिक्कत है। उन्होंने यह भी दावा किया कि महाराष्ट्र के चुनाव नतीजों से राज्य की जनता खुश नहीं है। इस बयान के पीछे कई चुनाव लड़ चुके शरद पवार की यह पूर्वाग्रह है कि मतदाता जो मानस लोकसभा चुनाव में बनाता है, वही विधानसभा चुनाव नतीजों में भी परिलक्षित होता है। हकीकत में ऐसा हो, जरूरी नहीं है। विधानसभा चुनाव के मुददे और तकाजे अलग अलग होते हैं। दोनो में हमेशा एक से नतीजे आएं, यह जरूरी नहीं है।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के चार माह पहले देश के साथ राज्य की 47 लोकसभा सीटों पर हुए चुनाव में इंडिया गठबंधन ने 30 सीटें जीतकर भारी कामयाबी हासिल की थी। लेकिन विधानसभा चुनाव आते आते पवार के प्रति सहानुभूति लहर और इंडिया गठबंधन के पक्ष में बना माहौल हाशिए पर चला गया। शरद पवार की पार्टी विस चुनाव में मात्र 10 सीटें ही जीत पाई। यहां दिलचस्प बात यह है कि लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन के घटक राकांपा( शरद) ने 8 सीटें जीतने से गदगद पवार ने पीएम नरेन्द्र मोदी पर तीखा कटाक्ष करते हुए कहा था कि मोदी के धुआंधार प्रचार के कारण ही हम शानदार जीत हासिल कर पाए। तब पवार के हिसाब से ईवीएम भी बढि़या काम कर रही थी। लेकिन विधानसभा चुनाव में हार के लिए उन्होंने मोदी को श्रेय देने की जगह हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ा। गोया लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए ईवीएम अलग-अलग ढंग से मैनेज की गई हों।
इन चुनावों में अगर शरद पवार की पार्टी के परफार्मेंस की ही बात की जाए तो उन्हें इस साल हुए लोकसभा चुनाव में 10.27 फीसदी वोट मिले थे और चार माह बाद हुए विधानसभा चुनाव में 11.28 प्रतिशत वोट मिले। यानी करीब एक फीसदी ज्यादा। अजित पवार गुट के अलग होने के बाद शरद पवार के पास 14 विधायक बचे थे। अब चुनाव बाद भी उनके 10 विधायक हैं। यानी कोई बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ा। अब शरद पवार अपनी निराशा को जनता की हताशा के रूप में पेंट करना चाहते हैं तो यह भी एक थकी हुई चाल ही है। अगर महाराष्ट्र के चुनाव नतीजे सच में जनाकांक्षा के पूरी तरह विपरीत आते तो जनता ही सड़कों पर उतर आती। वैसा कहीं कुछ नहीं दिखा। ईवीएम खारिज करने को लेकर जो राजनीतिक प्रतिरोध हो रहा है, उसे भी आम जनता कौतुहल के साथ देख रही है। अलबत्ता हर चुनाव में मरकडवाडी जैसी ‘प्रोटेस्ट माॅक ड्रिल’ हर जगह होने लगेगी तो हमारे समूचे चुनाव सिस्टम पर गंभीर सवाल उठने लगेगा। इससे कोई समाधान शायद ही निकले, लेकिन अवांछित अराजकता जरूर फैलेगी। सुविधानुसार ईवीएम को खारिज करने और निर्वाचन प्रक्रिया को कटघरे में खड़ा करते रहने की जगह अगर पराजित पार्टियां आत्मावलोकन कर आंतरिक सुधार करें तो लोकतंत्र ज्यादा मजबूत होगा।
वरिष्ठ संपादक
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