Indore News: 28 वोट से जीतने वाले MP के भाजपा नेता को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट से बड़ी राहत, बरकरार रहेगी विधायकी
Indore News: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा उम्मीदवार अरुण भीमावद की उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी पर केवल 28 वोट से हासिल जीत को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी।
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Indore News: उज्जवल प्रदेश,इंदौर. मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा उम्मीदवार अरुण भीमावद की उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी पर केवल 28 वोट से हासिल जीत को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस याचिका में पेश दलीलें अस्पष्ट हैं और उनमें तथ्यों का अभाव है।
यह याचिका सूबे के पूर्व मंत्री व कांग्रेस उम्मीदवार हुकुम सिंह कराड़ा ने दायर की थी। इसमें डाक मतपत्रों की गिनती में गड़बड़ी और अन्य अनियमितताओं के आरोप लगाए गए थे। कराड़ा को पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी परंपरागत शाजापुर सीट पर भीमावद के हाथों महज 28 वोट से हार का सामना करना पड़ा था। भीमावद को 98,960 मत हासिल हुए थे, जबकि कराड़ा के खाते में 98,932 वोट गए थे।
हाई कोर्ट की इंदौर पीठ के जस्टिस प्रणय वर्मा ने कराड़ा की ओर से दायर चुनाव याचिका खारिज करते हुए कहा कि इस याचिका में पेश दलीलों के सावधानीपूर्वक, सूक्ष्म और सार्थक अवलोकन से स्पष्ट है कि इनके समर्थन में कोई भी भौतिक विवरण और दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया गया है।
अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा, ‘‘चुनाव याचिका प्रथम दृष्टया किसी भी मामले का खुलासा नहीं करती है। याचिका को कुछ यूं तैयार किया गया है कि इसमें पेश दलीलों को लगभग हर उस दूसरी चुनाव याचिका में कॉपी-पेस्ट किया जा सकता है जिसमें डाक मतपत्रों को अस्वीकार किए जाने के आधार पर किसी संसदीय सीट के चुनाव पर सवाल उठाए जाते हैं।’’
कराड़ा ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि मतगणना के दौरान 158 डाक मतपत्रों को अनुचित तरीके से खारिज कर दिया गया था। याचिका में दावा किया गया था कि यदि इन खारिज किए गए डाक मतपत्रों की गिनती की गई होती, तो कराड़ा को इनके बूते बढ़त हासिल होती और वह भीमावद के खिलाफ चुनाव जीत जाते। दूसरी ओर, भीमावद की ओर से अदालत में कहा गया कि डाक मतपत्रों को अनुचित तरीके से खारिज किए जाने को लेकर कराड़ा के आरोप में भौतिक तथ्यों का अभाव है।
हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की अलग-अलग नजीरों का हवाला देते हुए कहा कि मतों की पुनर्गणना का आदेश केवल तभी पारित किया जा सकता है, जब प्रथम दृष्टया कोई मामला बनता हो और मतों की गिनती में गड़बड़ी बताने के लिए भौतिक तथ्यों के आधार पर दलील पेश की जाए।