MahaKumbh 2025: जनवरी 2025 में महाकुंभ का आगाज, जाने सारी जानकारी

MahaKumbh 2025 का आगाज जनवरी 2025 में होगा, ये आस्था का महापर्व है जिसमें हजारो श्रद्धालू संगम पर एकत्रित होकर जप-तप, स्नान आदि कर पुण्य कमाते हैं. महाकुंभ 2025 की समस्त जानकारी यहां देखें.

MahaKumbh 2025: उज्जवल प्रदेश डेस्क, प्रयागराज. महाकुंभ 2025 दुनिया के सभी कोनों से लाखों भक्तों और यात्रियों को आकर्षित करता है. इस मेले में शाही स्नान महाकुंभ मेले के शुभारंभ का प्रतीक है.

शाही स्नान पहले साधु संत करते हैं और फिर आम लोग संगम पर आस्था की डूबकी लगाते हैं. कहते हैं इससे साधु-संतो के पुण्य कर्मों एवं और गहन ज्ञान का आशीर्वाद प्राप्त होता है. महाकुंभ कब से शुरू हो रहा है, शाही स्नान की तिथियां, प्रयागराज में कौन-कौन से मंदिर में दर्शन कर सकते हैं.

महाकुंभ 2025 की सारी जानकारी यहां देखें

महाकुंभ 2025 के बारे में सारी जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो इसकी ऑफिशियल वेवसाइट https://kumbh.gov.in/ महाकुंभ मेला 2025 पर क्लिक करें.

इस वेबसाइट पर बताया है कि प्रयागराज कैसे पहुंचें, कहां ठहरें, पर्यटकों के लिए मेले में क्या सुविधाएं (पुलिस, भोजन, मेडिकल आदि) रहेंगी, प्रयागराज में दर्शनीय स्थल क्या है, टूरिस्ट गाइड, स्नान की तिथियां आदि सभी जानकारी दी गई हैं. यहां से आप महाकुंभ में ठहरने के लिए बुकिंग भी कर सकते हैं. (MahaKumbh 2025)

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MahaKumbh शाही स्नान 2025

मकर संक्रांति से माघी पूर्णिमा तक संगम में स्नान करना पवित्र माना जाता है, फिर भी महाकुम्भ 2025 की कुछ स्नान तिथियाँ अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं. मान्यता है कि गंगा, यमुना, सरस्वती नदी के पवित्र जल में स्नान से न केवल शारीरिक अशुद्धियाँ दूर होती हैं बल्कि मन को भी शुद्ध करता है और ईश्वर के साथ आध्यात्मिक संबंध को नवीनीकृत करता है.

कब होंगे महाकुंभ के छह शाही स्नान

प्रयागराज कुंभ मेले में चार शाही स्नान होंगे. महाकुंभ मेला का पहला शाही स्नान 13 जनवरी 2025 को होगा. दूसरा शाही स्नान 14 जनवरी 2025 को मकर संक्रांति पर होगा, तीसरा स्नान 29 जनवरी 2025 को मौनी अमावस्या पर होगा, चौथा शाही स्नान 2 फरवरी 2025 को बसंत पंचमी पर होगा, पांचवां शाही स्नान 12 फरवरी 2025 को माघ पूर्णिमा पर होगा और आखिरी शाही स्नान 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि पर होगा.

महाकुंभ मेले पर बनेगा ये शुभ संयोग | Mahakumbh Mela 2025 Shubh Sanyog

महाकुंभ मेले पर रवि योग का निर्माण होने जा रहा है. इस दिन इस योग का निर्माण सुबह 7 बजकर 15 मिनट से होगा और सुबह 10 बजकर 38 मिनट इसका समापन होगा. इसी दिन भद्रावास योग का भी संयोग बन रहा है और इस योग में भगवान विष्णु की पूजा करना विशेष फलदायी माना जाता है.

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कैसे तय होती है महाकुंभ मेले की तारीख

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, महाकुंभ मेले की तिथि ग्रहों और राशियों के अनुसार ही तय होती है. कुंभ मेले की तिथि निर्धारित करने के लिए सूर्य और बृहस्‍पति को महत्‍वपूर्ण माना जाता है. ग्रहों की स्थिति के आधार पर कुंभ का स्‍थान चुना जाता है, जो कि निम्‍न प्रकार से है:

  • प्रयागराज- जब बृहस्‍पति वृषभ राशि में होते हैं और सूर्य मकर राशि में विराजमान होते हैं, तो मेले का आयोजन प्रयागराज में किया जाता है.
  • हरिद्वार- जब सूर्य मेष राशि और बृहस्‍प‍ति कुंभ राशि में होते हैं, तब कुंभ का मेला हरिद्वार में लगता है.
  • नासिक– जिस समय सूर्य और बृहस्‍पति सिंह राशि में विराजमान होते हैं, तो उस दौरान कुंभ का मेला महाराष्‍ट्र के नासिक में लगता है.
  • उज्‍जैन- बृहस्‍पति के सिंह राशि में और सूर्य के मेष राशि में होने पर उज्‍जैन में महाकुंभ होता है.

महाकुंभ मेले का एतिहासिक महत्व

मान्यतानुसार, महाकुंभ मेले का संबंध समुद्र मंथन से माना जाता है. कथा के अनुसार, एक बार ऋषि दुर्वासा के श्राप से इंद्र और अन्‍य देवता कमजोर पड़ गए थे. इसका लाभ उठाते हुए राक्षसों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया था और इस युद्ध में देवताओं की हार हुई थी. तब सभी देवता मिलकर सहायता के लिए भगवान विष्‍णु के पास गए और उन्‍हें सारी बात बताई. भगवान विष्‍णु ने राक्षसों के साथ मिलकर समुद्र मंथन कर के वहां से अमृत निकालने की सलाह दी.

जब समुद्र मंथन से अमृत का कलश निकला, तो भगवान इंद्र का पुत्र जयंत उसे लेकर आकाश में उड़ गया. यह सब देखकर राक्षस भी जयंत के पीछे अमृत कलश लेने के लिए भागे और बहुत प्रयास करने के बाद दैत्‍यों के हाथ में अमृत कलश आ गया. इसके बाद अमृत कलश पर अपना अधिकार जमाने के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच 12 दिनों तक युद्ध चला था. समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश से कुछ बूंदें हरिद्वार, उज्‍जैन, प्रयागराज और नासिक में गिरी थीं इसलिए इन्‍हीं चार स्‍थानों पर महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है.

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