आखिर 12 वर्ष बाद ही क्यों होता है MahaKumbh का आयोजन?
MahaKumbh 2025: क्या आप जानते हैं कि महाकुंभ का अद्वितीय आयोजन हर 12 साल बाद ही क्यों किया जाता है? दरअसल इस मेले के आयोजन के पीछे गहरी पौराणिक मान्यताएं और परंपराएं जुड़ी हुई हैं। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
Why MahaKumbh Is Celebrated Every 12 Years: उज्जवल प्रदेश डेस्क, प्रयागराज. कुंभ मेला भारतीय संस्कृति का एक अद्वितीय धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन माना जाता है। यह भारत की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हर 12 वर्षों में विशेष रूप से चार स्थानों- प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार इस आयोजन में पवित्र नदियों में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह अद्वितीय आयोजन हर 12 साल बाद ही क्यों किया जाता है? दरअसल इस मेले के आयोजन के पीछे गहरी पौराणिक मान्यताएं और परंपराएं जुड़ी हुई हैं।
Also Read: Mahakumbh 2025 में अखाड़ों का भव्य प्रदर्शन, जानिए इतिहास…
कब से कब तक लगेगा MahaKumbh
हिन्दू पंचांग के अनुसार पौष पूर्णिमा के दिन महाकुंभ आरंभ होगा और महाशिवरात्रि के साथ इसका समाप्त हो जाएगा। साल 2025 में महाकुंभ 13 जनवरी से आरंभ होगा और 26 फरवरी 2025 को समाप्त होगा। महाकुंभ पूरे 45 दिनों तक चलेगा।
क्यों हर 12 वर्ष में लगता है कुंभ मेला?
मान्यता है कि कुंभ मेले की उत्पत्ति समुद्र मंथन की प्राचीन कथा से जुड़ी है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया था। अमृत कलश को लेकर देवताओं और असुरों के बीच 12 दिव्य दिनों तक संघर्ष चला था। ये 12 दिन पृथ्वी के 12 वर्षों के बराबर माने जाते हैं।
कथा के अनुसार, इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें 12 स्थानों पर गिरी थीं, जिनमें से चार स्थान पृथ्वी पर स्थित हैं, जो प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक हैं। यही कारण है कि इन स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। वहीं ज्योतिषीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो बृहस्पति ग्रह हर 12 वर्षों में 12 राशियों का चक्र पूरा करता है। ऐसे में कुंभ मेला का आयोजन उस समय होता है, जब बृहस्पति किसी विशेष राशि में स्थित होते हैं।
Also Read: MahaKumbh 2025: आखिर क्यों त्रिवेणी संगम पर किया जाता है शाही स्नान?
शाही स्नान का महत्व क्या है?
कुंभ मेले में पवित्र नदियों में स्नान करना अत्यधिक शुभ माना जाता है। माना जाता है कि इस दौरान नदियों का जल अमृत के समान पवित्र होता है, इसलिए इस दौरान श्रद्धालु दूर-दूर से स्नान करने आते हैं। प्रयागराज के संगम स्थल, जहां गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन होता है, को विशेष धार्मिक महत्व प्राप्त है। श्रद्धालु यहां स्नान कर अपने पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।