Ayudha Pooja को क्यों मनाते है विजयादशमी के रूप में, जाने शस्त्र पूजा की विधि
अश्विन पक्ष की विजयादशमी के दिन आयुध पूजा (Ayudha Pooja) होती है। आयुध पूजा को शस्त्र पूजा के नाम से भी जाना जाता है।
Ayudha Pooja : हिन्दू घरों में दशहरा (विजया दशमी) के दिन शस्त्रों (हथियारों) की पूजा की जाती है। विशेषकर क्षत्रिय, योद्धा एवं सैनिक vijayadashmi के दिन अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं। इस दिन शमी पूजन का भी विधान है। पुरातन काल में राजशाही के लिए क्षत्रियों के लिए यह पूजा मुख्य मानी जाती थी।
क्या है आयुध पूजा
पुरातन काल में शस्त्रों की पूजा की जाती थी, क्योंकि शस्त्रों से ही दुश्मन को पराजित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए मां दुर्गा के चामुंडेश्वरी रूप ने राक्षस महिषासुर का वध किया और इसी की स्मरणार्थ आयुध पूजा की परंपरा वहां से चली आ रही है।
Ayudha Pooja (हथियारों की पूजा) वह दिन है जिसमें हम शस्त्रों को पूजते हैं और उनके प्रति कृतज्ञ होते हैं, क्योंकि इनका हमारे जीवन में बहुत महत्व है। इसके साथ ही शस्त्र पूजा के दिन छोटी-छोटी चीजें जैसे पिन, चाकू, कैंची, हथकल से लेकर बड़ी मशीनें, गाड़ियां, बसें इत्यादि इन सभी चीजों को भी पूजा जाता है।
कब होती है आयुध पूजा (Ayudha Pooja kab hai)
शस्त्र पूजन का अश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को विधान है। आयुध पूजा विजयादशमी (vijayadashmi) के दिन की जाती है। इस दिन शुभ मुहूर्त को देखकर लोग अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं। इस दिन भारत में रावण का दहन भी किया जाता है। जब सूर्यास्त होता है और आसमान में कुछ तारे दिखने लगते हैं तो यह अवधि विजय मुहूर्त कहलाती है।
विजय मुहूर्त में कोई भी पूजा या कार्य करने से अच्छा परिणाम प्राप्त होता है। कहते हैं कि भगवान श्रीराम ने दुष्ट रावण को हराने के लिए युद्ध का प्रारंभ इसी मुहुर्त में किया था। इसी समय शमी नामक पेड़ ने अर्जुन के गाण्डीव नामक धनुष का रूप लिया था। शरद नवरात्रि (Sharad Navratri) के दौरान नौ दिनों की शक्ति उपासना के बाद दसवें दिन जीवन के हर क्षेत्र में विजय की कामना के साथ चंद्रिका का स्मरण करते हुए शस्त्रों का पूजन करना चाहिए। vijayadashmi के शुभ अवसर पर शक्ति-रूपा दुर्गा, काली की आराधना के साथ-साथ शस्त्र पूजा की परंपरा है।
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शस्त्र पूजा की सही विधि (right method of weapon worship)
- विजया दशमी के दिन प्रात: जल्दी उठें।
- शौच आदि कार्य को संपन्न कर शस्त्रों की साफ-सफाई करें।
- स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- शुभ मुहूर्त से पहले शस्त्र पूजन की तैयारी करें।
- शुभ महूर्त में शस्त्र को पूजना उत्तम होता है।
- पूजा के दौरान शस्त्र पर पहले गंगा जल छिड़कें।
- महाकाली स्त्रोत का पाठ करें।
- शस्त्र पर कुमकुम, हल्दी का तिलक लगाएँ।
- अब पुष्प माला चढ़ाएँ।
- अब धूप दिखाकर मिष्ठान का प्रसाद चढ़ाएँ।
- पूजा के बाद इस प्रसाद को बांटें।
आयुध पूजा का महत्व (Importance of Ayudha Puja)
हिन्दू धर्म पूर्ण रूप से वैज्ञानिक जीवन पद्धति है। इसमें किए जाने वाले कार्य पूर्ण रूप से तार्किक हैं। इसमें किए जाने वाले प्रत्येक अच्छे कार्यों को हमारे ऋषि-मुनियों ने धर्म से जोड़ दिया, ताकि सदियों-सदियों तक उसका पालन होता रहे। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में क्षत्रिय युद्ध पर जाने के लिए vijyadashmi के दिन का चुनाव करते थे। उनका विश्वास था कि दशहरा के दिन प्रारंभ किए गए युद्ध में विजय निश्चित होती है।
इसके अलावा पौराणिक काल में ब्राह्मण भी दशहरा (Dussehra) के ही दिन विद्या ग्रहण करने के लिए अपने घर से निकलता था और व्यापारी वर्ग भी दशहरा के दिन ही अपने व्यापार की शुरूआत करता था। दशहरे पर शमी के वृक्ष के पूजन का विशेष महत्व है। नवरात्रि में भी शमी के वृक्ष की पत्तियों से पूजन करने का महत्व बताया गया है।
पौराणिक कथा (Ayudha Puja mythology)
पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत काल में दुर्योधन ने जुए में पांडवों को हरा दिया था। शर्त के अनुसार पांडवों को 12 वर्षों तक निर्वासित रहना पड़ा, जबकि एक साल के लिए उन्हें अज्ञातवास में भी रहना पड़ा। अज्ञातवास के दौरान उन्हें हर किसी से छिप कर रहना था और यदि कोई उन्हें पा लेता तो उन्हें दोबारा 12 वर्षों का निर्वासन का दंश झेलना पड़ता। इस कारण अर्जुन ने उस एक साल के लिए अपनी गांडीव धनुष को शमी नामक वृक्ष पर छुपा दिया था और राजा विराट के लिए एक ब्रिहन्नला का छद्म रूप धारण कर कार्य करने लगे। एक बार जब उस राजा के पुत्र ने अर्जुन से अपनी गाय की रक्षा के लिए मदद की गुहार लगाई तो अर्जुन ने उसी शमी वृक्ष से अपने धनुष को वापस निकाला और उसकी पूजा कर उन्होंने शत्रुओं को हरा दिया। तभी से इस दिन शस्त्र पूजा होने लगी।
महिषासुर वध के बाद हुई थी शस्त्र पूजा
हिंदू पुराणों के अनुसार, महिषासुर जैसे शक्तिशाली राक्षस को को हराने के लिए देवों को अपनी समूची शक्तियां एक साथ लानी पड़ी। अपनी दस भुजाओं के साथ मां दुर्गा प्रकट हुईं। उनकी हर भुजा में एक हथियार था। महिषासुर और देवी के बीच नौ दिन तक लगातार युद्ध चलता रहा। दसवें दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया।
सभी शस्त्रों के प्रयोग का उद्देश्य पूरा हो जाने के बाद उनका सम्मान करने का समय था। उन्हें देवताओं को वापस लौटना भी था। इसलिए सभी हथियारों की साफ-सफाई के बाद पूजा की गई, फिर उन्हें लौटाया गया। इसी की याद में आयुध पूजा की जाती है।
Ayudha Puja आध्यात्मिक और दार्शनिक अर्थ
आध्यात्मिक गुरुओं और विशेषज्ञों के आयुध पूजा के दिन यंत्रों और शस्त्रों की पूजा करने से तृप्ति की अनुभूति होती है। विशेषज्ञों के अनुसार, जब कोई व्यक्ति अपने पास मौजूद चीजों के प्रति श्रद्धा दिखाता है, तो यह उन्हें ब्रह्मांड के साथ सामंजस्य स्थापित करता है।
आयुध पूजा पर किए गए अनुष्ठान (Rituals performed on Ayudha Puja)
भक्त देवी का आशीर्वाद लेने और उनके द्वारा हासिल की गई जीत को चिह्नित करने के लिए अपने उपकरण देवी के सामने रखते हैं। औजारों और वाहनों पर हल्दी और चंदन के मिश्रण का तिलक लगाया जाता है। कुछ लोग इन शस्त्रों को फूलों से भी सजाते हैं।
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अस्त्र-शस्त्र ही नहीं इनकी पूजा का भी है विधान
दहशरे पर केवल अस्त्र-शस्त्र ही नहीं कागज, कलम, उपकरण, वाहन या सामान की भी पूजा होती है। इस दिन लोग जिस भी कार्य से जुड़े होते हैं, उसकी पूजा करते हैं। दक्षिण भारत में विश्वकर्मा पूजा के समान वहां के लोग अपने उपकरणों और शस्त्रों की पूजा करते हैं।
सरस्वती, लक्ष्मी और देवी पार्वती जाती हैं पूजी
Ayudha Puja पर ज्ञान,संगीत और बुद्धि की देवी सरस्वती की पूजा, धन की देवी लक्ष्मी और दिव्य स्वरूप में मां पार्वती की पूजा की जाती है। बंगाल में दशहरे पर काली पूजा होती है।