Jaya Ekadashi 2022: जाने जया एकादशी 2022 की पूजा विधि, व्रत कथा और महत्व
हिंदू धर्म में सभी व्रतों में एकादशी व्रत (Jaya Ekadashi 2022) को श्रेष्ठतम माना जाता है। हर साल 24 एकादशियां होती हैं और जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी यह 26 हो जाती है।
Jaya Ekadashi 2022: माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जया एकादशी (Jaya Ekadashi) व्रत रखा जाता है। इस साल यह तिथि 12 फरवरी 2022 (शनिवार) को है। मान्यता है कि जया एकादशी (Jaya Ekadashi) के दिन विधि-विधान से पूजा व व्रत रखने भगवान विष्णु (Lord Vishnu) का आशीर्वाद प्राप्त होता है। मां लक्ष्मी (Maa Laxmi) अपनी कृपा बरसाती हैं और समस्त कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। जया एकादशी (Jaya Ekadashi) के विषय में जो कथा प्रचलित है उसके अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से निवेदन करते हैं कि माघ शुक्ल एकादशी को किनकी पूजा करनी चाहिए तथा इस एकादशी का क्या महात्मय है। श्री कृष्ण कहते हैं ‘जया एकादशी’ (Jaya Ekadashi) बहुत ही पुण्यदायी है, इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति नीच योनि जैसे भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त हो जाता है। श्री कृष्ण (Shri Krishna) ने इस संदर्भ में एक कथा भी युधिष्ठिर को सुनाई।
जया एकादशी व्रत पूजा विधि (Jaya Ekadashi 2022)
- जया एकादशी (Jaya Ekadashi) वाले दिन व्रत रखने वाले को सुबह जल्दी उठना चाहिए और स्नान करना चाहिए।
- फिर पूजा स्थल को साफ करना चाहिए। अब भगवान विष्णु (Lord Vishnu) और भगवान कृष्ण (Lord Krishna) की मूर्ति, प्रतिमा या उनके चित्र को स्थापित करना चाहिए।
- इस दिन भक्तों को विधि-विधान से पूजा अर्चना करनी चाहिए।
- पूजा के दौरान भगवान कृष्ण के भजन और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए।
- प्रसाद, तुलसी जल, फल, नारियल, अगरबत्ती और फूल देवताओं को अर्पित करने चाहिए।
- पूजा के दौरान मंत्रों का जाप करना चाहिए।
- अगली सुबह यानि द्वादशी पर पूजा के बाद भोजन का सेवन करने के बाद जया एकादशी व्रत का पारण करना चाहिए।
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जया एकादशी पर न करें ये काम (Jaya Ekadashi 2022)
- जया एकादशी (Jaya Ekadashi) व्रत के दिन भूलकर भी जुआ नहीं खेलना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा करने से व्यक्ति के वंश का नाश होता है।
- जया एकादशी (Jaya Ekadashi) व्रत में रात को सोना नहीं चाहिए। व्रत करने वाले को पूरी रात भगवान विष्णु की भक्ति, मंत्र जप और जागरण करना चाहिए।
- जया एकादशी व्रत (Jaya Ekadashi) के दिन भूलकर भी चोरी नहीं करनी चाहिए। कहा जाता है कि इस दिन चोरी करने से 7 पीढ़ियों को उसका पापा लगता है।
- जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए व्रत के दौरान खान-पान और अपने व्यवहार में संयम के साथ सात्विकता भी बरतनी चाहिए।
- जया एकादशी के दिन व्रत करने वाले को भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए किसी भी व्यक्ति से बात करने के लिए कठोर शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इस दिन क्रोध और झूठ बोलने से बचना चाहिए।
- जया एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठना चाहिए और शाम के समय सोना नहीं चाहिए।
जया एकादशी व्रत कथा (Jaya Ekadashi 2022)
युधिष्ठर से श्रीकृष्ण बोले- एक समय की बात है। स्वर्गलोक में देवराज इन्द्र राज्य करते थे। देवगण पारिजात वृक्षों से युक्त नंदनवन में अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे। 50 करोड़ गन्धर्वों के नायक देवराज इन्द्र ने स्वेच्छानुसार वन में विहार करते हुए बड़े हर्ष के साथ नृत्य का आयोजन किया। गन्धर्व उसमें गान कर रहे थे, जिनमें पुष्पदन्त, चित्रसेन तथा उसका पुत्र- ये तीन प्रधान थे। चित्रसेन की स्त्री का नाम मालिनी था। मालिनी से एक कन्या उत्पन्न हुई थी, जो पुष्पवन्ती के नाम से विख्यात थी। पुष्पदन्त गंधर्व का एक पुत्र था, जिसको लोग माल्यवान कहते थे। माल्यवान पुष्पवन्ती के रूप पर अत्यन्त मोहित था। ये दोनों भी इन्द्र के संतोषार्थ नृत्य करने के लिए आए थे। इन दोनों का गान हो रहा था। इनके साथ अप्सराएं भी थीं। परस्पर अनुराग के कारण ये दोनों मोह के वशीभूत हो गए। चित्त में भ्रांति आ गई इसलिए वे शुद्ध गान न गा सके। कभी ताल भंग हो जाता था तो कभी गीत बंद हो जाता था। इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और इन दोनों को शाप देते हुए बोले: ‘ओ मूर्खो ! तुम दोनों को धिक्कार है! तुम लोग पतित और मेरी आज्ञाभंग करनेवाले हो, अत: पति पत्नी के रूप में रहते हुए पिशाच हो जाओ।’
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इन्द्र के इस प्रकार शाप देने पर इन दोनों के मन में बड़ा दु:ख हुआ। वे हिमालय पर्वत पर चले गए और पिशाच योनि को पाकर भयंकर दु:ख भोगने लगे। शारीरिक पातक से उत्पन्न ताप से पीड़ित होकर दोनों ही पर्वत की कन्दराओं में विचरते रहते थे। एक दिन पिशाच ने अपनी पत्नी पिशाची से कहा: ‘हमने कौन सा पाप किया है, जिससे यह पिशाच योनि प्राप्त हुई है? नरक का कष्ट अत्यन्त भयंकर है तथा पिशाच योनि भी बहुत दु:ख देने वाली है। अत: पूर्ण प्रयत्न करके पाप से बचना चाहिए’।
इस प्रकार चिन्तामग्न होकर वे दोनों दु:ख के कारण सूखते जा रहे थे। दैवयोग से उन्हें माघ मास के शुक्लपक्ष की एकादशी की तिथि प्राप्त हो गई। ‘जया’ नाम से विख्यात वह तिथि सब तिथियों में उत्तम है। उस दिन उन दोनों ने सब प्रकार के आहार त्याग दिए, जल पान तक नहीं किया। किसी जीव की हिंसा नहीं की, यहां तक कि खाने के लिए फल तक नहीं काटा। निरंतर दु:ख से युक्त होकर वे एक पीपल के समीप बैठे रहे। सूर्यास्त हो गया। उनके प्राण हर लेने वाली भयंकर रात्रि उपस्थित हुई। उन्हें नींद नहीं आई। वे रति या और कोई सुख भी नहीं पा सके ।
सूर्यादय हुआ, द्वादशी का दिन आया। इस प्रकार उस पिशाच दंपति के द्वारा ‘जया’ के उत्तम व्रत का पालन हो गया। उन्होंने रात में जागरण भी किया था। उस व्रत के प्रभाव से तथा भगवान विष्णु की शक्ति से उन दोनों का पिशाचत्व दूर हो गया। पुष्पवन्ती और माल्यवान अपने पूर्वरुप में आ गए। उनके हृदय में वही पुराना स्नेह उमड़ रहा था। उनके शरीर पर पहले जैसे ही अलंकार शोभा पा रहे थे।
वे दोनों मनोहर रूप धारण करके विमान पर बैठे और स्वर्गलोक में चले गए। वहां देवराज इन्द्र के सामने जाकर दोनों ने बड़ी प्रसन्नता के साथ उन्हें प्रणाम किया। उन्हें इस रुप में उपस्थित देखकर इन्द्र को बड़ा विस्मय हुआ! उन्होंने पूछा: ‘बताओ, किस पुण्य के प्रभाव से तुम दोनों का पिशाचत्व दूर हुआ है? तुम मेरे शाप को प्राप्त हो चुके थे, फिर किस देवता ने तुम्हें उससे छुटकारा दिलाया है?’
माल्यवान बोला : स्वामिन! भगवान वासुदेव की कृपा तथा ‘जया’ नामक एकादशी के व्रत से हमारा पिशाचत्व दूर हुआ है ।
इन्द्र ने कहा : तो अब तुम दोनों मेरे कहने से सुधापान करो । जो लोग एकादशी के व्रत में तत्पर और भगवान श्रीकृष्ण के शरणागत होते हैं, वे हमारे भी पूजनीय होते हैं ।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: राजन ! इस कारण एकादशी का व्रत करना चाहिए । नृपश्रेष्ठ ! ‘जया’ ब्रह्महत्या का पाप भी दूर करनेवाली है । जिसने ‘जया’ का व्रत किया है, उसने सब प्रकार के दान दे दिये और सम्पूर्ण यज्ञों का अनुष्ठान कर लिया । इस माहात्म्य के पढ़ने और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है ।