जलझूलनी एकादशी व्रत का जानें महत्व और पूजा विधि

नई दिल्ली
प्रत्येक वर्ष शुक्ल और कृष्ण पक्ष में एकादशी व्रत रखा जाता है। साल में पड़ने वाली इन एकादशी को विभिन्न नाम से जाना जाता है। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जलझूलनी एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी, पद्मा एकादशी और डोल ग्यारस भी कहते हैं। इस बार जलझूलनी एकादशी का व्रत 06 सितंबर, मंगलवार को रखा जाएगा। इस एकदशी व्रत को दौरान भी भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना होती है। जल झूलनी एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की अर्चना की जाती है। धर्म ग्रंथों के मुताबिक परिवर्तिनी एकादशी या जलझूलनी एकादशी पर व्रत करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है और सभी प्रकार के पापों का नाश होता है। जो मनुष्य इस एकादशी को भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं।आइए जानते हैं कि जलझूलनी एकादशी कब है, इसका महत्व और पूजा विधि के बारे में।

 

जलझूलनी एकादशी तिथि और शुभ मुहूर्त
जलझूलनी एकादशी तिथि और शुभ मुहूर्त
जलझूलनी एकादशी तिथि और शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ- सितम्बर 06, 2022, मंगलवार, प्रातः 05:54 से  
एकादशी तिथि समाप्त -सितम्बर 07, 2022, बुधवार प्रातः 03:04 बजे
जलझूलनी/परिवर्तिनी एकादशी पारण समय- 8 सितम्बर, गुरुवार, प्रातः 06:02 से 08:33 तक  

 

जलझूलनी एकादशी का महत्व
स्कन्द पुराण के अनुसार चातुर्मास के दौरान जब श्री विष्णु योग निद्रा में जाते हैं, उसके बाद जलझूलनी एकादशी के दिन वह सोते हुए करवट बदलते हैं।  पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस एकादशी व्रत को करने से वाजपेय यज्ञ के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है। कहते हैं भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं इस व्रत का माहात्म्य युधिष्ठिर को बताया है। इस दिन भगवान करवट लेते हैं, इसलिए इसको परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं। मान्यता यह भी है को जो भक्त भाद्रपद शुक्ल एकादशी का व्रत और पूजन करते हैं, उन्हें ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों में पूजन का फल प्राप्त होता है।

 

जलझूलनी एकादशी की व्रत विधि
–   परिवर्तिनी/जलझूलनी एकादशी व्रत के नियम का पालन दशमी तिथि की रात्रि से ही आरंभ कर देना चाहिए।
–    एकादशी के दिनप्रातः स्नानआदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और इसके बाद भगवान वामन की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
–    इसके बाद भगवान वामन की प्रतिमा के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें।
–    इसके बाद भगवान वामन की पूजा विधि-विधान से करें
–    सबसे पहले भगवान वामन को पंचामृत से स्नान कराएं।
–    स्नान कराने के बाद उनके चरणामृत को व्रती अपने और परिवार के सभी सदस्यों पर छिड़के और उस चरणामृत को पिए।
–    इसके बाद वामन देव को पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करे।
–    इसके बाद विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें और भगवान वामन की कथा सुनें।
–    द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर और दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करें।

 

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