Govardhan Puja 2022 : जाने गोवर्धन पूजा का मुहूर्त, विधि और महत्व
हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) भी है जो प्रकृति ओर मानव को सीधे तौर पर जोड़ता है। Govardhan Puja को अन्नकूट का पर्व भी कहा जाता हैं।
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार Govardhan Puja पर्व कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानि दीपावली के दूसरे दिन बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। गोवर्धन पर्व गिरिराज गोवर्धन पर्वत और भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। इसके साथ ही यह पर्व वरुण देव, इंद्र देव और अग्नि देव आदि देवताओं की पूजा का भी विधान है। जानते है कि इसबार गोवर्धन पूजा कब है, (govardhan puja 2022 date) इस बार गोवर्धन पूजा 26 अक्टूबर 2022 दिन बुधवार को मनाई जा रही है।
गोवर्धन पूजा की तारीख एवं मुहूर्त (govardhan puja 2022 date)
त्यौहार के नाम | दिन | त्यौहार के तारीख |
गोवर्धन पूजा | बुधवार | 26 अक्टूबर 2022 |
गोवर्धन पूजा कितने बजे से कितने बजे तक है? (govardhan puja timings)
प्रतिपदा तिथि शुरू : 16:20 – 25 अक्टूबर 2022
प्रतिपदा तिथि खत्म : 14:40 – 26 अक्टूबर 2022
गोवर्धन जी की पूजा क्यों की जाती है? (Why is Govardhan Puja)
द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के अवतरण के बाद गोवर्धन पूजा या अन्नकूट पूजा प्रारंभ हुई है। इस पर्व सभी हिन्दू धर्मावलंबी घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन नाथ जी की अल्पना बनाकर उनका पूजन करते है। उसके बाद गिरिराज भगवान (पर्वत) | Giriraj Bhagwan (Giriraj Parvat) को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाया जाता है। Govardhan Puja के दिन मंदिरों में अन्नकूट का प्रसाद दिया जाता है।
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क्या है गोवर्धन पूजा का महत्व (importance of Govardhan Puja)
भगवान श्री कृष्ण के द्वारा भगवान इंद्र (Lord Indra) का अंहकार दूर करने के लिए गोवर्धन का त्योहार मनाते है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण के द्वारा ही सर्वप्रथम गोवर्धन पूजा आरंभ की गई थी और गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाकर इंद्रदेव के क्रोध से ब्रज के समस्त नर-नारियों और पशु-पक्षियों की रक्षा की थी। यही कारण है कि गोवर्धन पूजा में गिरिराज के साथ श्री कृष्ण जी के पूजन का भी विधान है। इस दिन अन्नकूट का विशेष महत्व माना जाता है। यह एक तरह का पकवान होता है जिसे अन्न और सब्जियों को मिलकर बनाया जाता है और भगवान को भोग लगाया जाता है। गोवर्धन की पूजा करके लोग प्रकृति के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
क्या है गोवर्धन पूजा विधि (govardhan puja method)
पूजा के दिन प्रात: काल जल्दी उठकर स्नानादि करने के पश्चात शुभ मुहूर्त में गाय के गोबर से गिरिराज गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाएं और साथ ही पशुधन यानी गाय, बछड़े आदि की आकृति भी बनानी चाहिए। इसके बाद धूप-दीप आदि से विधिवत पूजा करनी चाहिए। भगवान श्री कृष्ण को दुग्ध से स्नान कराने के बाद उनका पूजन करना चाहिए। इसके बाद अन्नकूट का भोग लगाना चाहिए।
भगवान कृष्ण और मां लक्ष्मी की करें पूजा (Worship Lord Krishna and Mother Lakshmi)
अन्नकूट बनाकर गोवर्धन पर्वत और भगवान श्रीकृष्ण (Lord Shri Krishna) की पूजा की जाती है साथ ही धन दौलत, गाड़ी, अच्छे मकान के लिए श्री कृष्ण जी और मां लक्ष्मी (Maa Lakshmi) को प्रसन्न किया जाता है, ताकि नौकरी या व्यापार में खूब तरक्की मिल सके।
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गोवर्धन पूजा मंत्र (govardhan puja mantra)
नैवेद्य अर्पित कर इस मंत्र से करें प्रार्थना (Govardhan Puja pray with this mantra)
लक्ष्मीर्या लोक पालानाम् धेनुरूपेण संस्थिता।
घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु।।
सायंकाल पश्चात् पूजित गायों से पूजित गोवर्धन पर्वत का मर्दन कराएं। फिर उस गोबर से घर-आंगन लीपें।
गोवर्धन पूजा की कथा (Govardhan Puja story)
एक बार इंद्रदेव को अभिमान हो गया, तब लीलाधारी श्री कृष्ण ने एक लीला रची। एक दिन श्री कृष्ण ने देखा कि सभी ब्रजवासी तरह-तरह के पकवान बना रहे हैं पूजा का मंडप सजाया जा रहा है और सभी लोग प्रात:काल से ही पूजन की सामाग्री एकत्रित करने में व्यस्त हैं। तब श्री कृष्ण ने योशदा जी से पूछा, ‘मईया’ ये आज सभी लोग किसके पूजन की तैयारी कर रहे हैं, इस पर मईया यशोदा ने कहा कि पुत्र सभी ब्रजवासी इंद्र देव के पूजन की तैयारी कर रहे हैं। तब कन्हैया ने कहा, कि सभी लोग इंद्रदेव की पूजा क्यों कर रहे हैं, तो माता यशोदा उन्हें बताते हुए कहती हैं, क्योंकि इंद्रदेव वर्षा करते हैं और जिससे अन्न की पैदावार अच्छी होती है और हमारी गायों को चारा प्राप्त होता है।
तब श्री कृष्ण ने कहा कि वर्षा करना तो इंद्रदेव का कर्तव्य है। यदि पूजा करनी है तो हमें गोवर्धन पर्वत की करनी चाहिए, क्योंकि हमारी गायें तो वहीं चरती हैं और हमें फल-फूल, सब्जियां आदि भी गोवर्धन पर्वत से प्राप्त होती हैं। इसके बाद सभी ब्रजवासी इंद्रदेव की बजाए गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। इस बात को देवराज इंद्र ने अपना अपमान समझा और क्रोध में आकर प्रलयदायक मूसलाधार बारिश शुरू कर दी। जिससे हर ओर त्राहि-त्राहि होने लगी। सभी अपने परिवार और पशुओं को बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। तब ब्रजवासी कहने लगे कि यह सब कृष्णा की बात मानने का कारण हुआ है, अब हमें इंद्रदेव का कोप सहना पड़ेगा।
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भगवान कृष्ण ने इंद्रदेव का अंहकार दूर करने और सभी ब्रजवासियों की रक्षा करने हेतु गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया। तब सभी ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण ली। इसके बाद इंद्रदेव को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने श्री कृष्ण से क्षमा याचना की। इसी के बाद से गोवर्धन पर्वत के पूजन की परंपरा आरंभ हुई।
गोवर्धन पूजा की तिथि और शास्त्रोक्त नियम (Govardhan Puja date and scriptural rules)
- गोवर्धन पूजा कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाई जाती है। इसकी गणना निम्न प्रकार से की जा सकती है।
- गोवर्धन पूजा कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन मनानी चाहिए लेकिन यह सुनिश्चित हो कि इस दिन संध्या के समय चंद्र दर्शन नहीं हो।
- यदि शाम को सूर्यास्त के समय कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन चंद्र दर्शन होने वाला है तो गोवर्धन पूजा पहले दिन करनी चाहिए।
- यदि सूर्य उदय के समय प्रतिपदा तिथि लगती है और चंद्र दर्शन नहीं हो, तो उसी दिन गोवर्धन पूजा मनानी चाहिए। अगर ऐसा नहीं हो तो गोवर्धन पूजा पहले दिन मान्य होगी।
- जब सूर्योदय के बाद प्रतिपदा तिथि कम से कम 9 मुहूर्त तक विद्यमान हो, भले ही उस दिन चंद्र दर्शन शाम को हो जाए लेकिन स्थूल चंद्र दर्शन का अभाव माना जाए। ऐसी स्थिति में गोवर्धन पूजा उसी दिन मनानी चाहिए।