Parshuram Jayanti 2022 में कब है, परशुराम जयंती क्यों मनाई जाती है…
02 मई सोमवार को भगवान परशुरामजी की जयंती (Parshuram Jayanti 2022) है। हिन्दू पंचांग के अनुसार परशुरामजी की जयंती वैशाख माह की शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। इसे ‘परशुराम द्वादशी’भी कहा जाता है। अक्षय तृतीया के दिन को परशुराम जयंती के रूप में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन दिए गए पुण्य का प्रभाव कभी भी खत्म नहीं होता है।
Parshuram Jayanti 2022 : भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं भगवान परशुराम। हनुमानजी की ही तरह इन्हें भी चिरंजीव होने का आशीर्वाद प्राप्त है। भगवान परशुराम जी की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इन्हें फरसा दिया था। फरसा को परशु भी कहा जाता है, फरसा धारण करने के बाद से इन्हें परशुराम के नाम से जाना जाता है। अक्षय तृतीया के दिन जन्म लेने के कारण ही भगवान परशुराम की शक्ति भी अक्षय थी।
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परशुराम किसके अवतार थे: भगवान परशुरामजी भगवान शिव और भगवान विष्णु के संयुक्त अवतार माने जाते हैं। शास्त्रों में उन्हें अमर माना गया है। त्रेता युग की शुरुआत ही अक्षय तृतीया से मानी जाती है। इस दिन का विशेष महत्व है। जब से हिन्दू धर्म का पुनुरोद्धार हुआ है, तब से परशुराम जयंती का महत्व और अधिक बढ़ गया है। परशुराम जयंती कब है 2022 | 2022 में परशुराम जयंती कब है | परशुराम जयंती कब है (parshuram jayanti date 2022 | परशुराम जयंती डेट २०२२) 02 मई सोमवार को है। parshuram jayanti kab hai 2022 | परशुराम जयंती कब की है | परशुराम जयंती पर छुट्टी
परशुराम का अर्थ | Parshuram Jayanti 2022
पराक्रम का प्रतीक है ‘परशु’। ‘राम’ पर्याय है सत्य सनातन का। इस प्रकार परशुराम का अर्थ हुआ पराक्रम के कारक और सत्य के धारक।
परशुरामजी के अन्य नाम
रामभद्र, भार्गव, भृगुपति, भृगुवंशी (ऋषि भृगु के वंशज), जमदग्न्य (जमदग्नि के पुत्र) के नाम से भी जाना जाता है.
परशुराम में समाहित है शिवहरि | bhagwan parshuram jayanti
मान्यता है कि परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। मेरा मानना है कि ‘परशु’ में भगवान शिव समाहित हैं और ‘राम’ में भगवान विष्णु। इसलिए परशुराम अवतार भले ही विष्णु के हों, किंतु व्यवहार में समन्वित स्वरूप शिव और विष्णु का है। इसलिए मेरे मत में परशुराम दरअसल ‘शिवहरि’ हैं।
कैसे राम से बने परशुराम | परशुराम जयंती की जीवनी
पिता जमदग्नि और माता रेणुका ने अपने 5वें पुत्र का नाम ‘राम’ ही रखा था, लेकिन तपस्या के बल पर भगवान शिव को प्रसन्न करके उनके दिव्य अस्त्र ‘परशु’ (फरसा या कुठार) प्राप्त करने के कारण वे राम से परशुराम हो गए।
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परशुराम कौन थे | परशुराम जयंती उत्सव
भगवान परशुराम भार्गव वंश में भगवान विष्णु (Vishnu) के छठे अवतार (Incarnation) हैं। जिनका जन्म त्रेता युग में हुआ था। इनके पिता ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका थे। ऋषि जमादग्नि तथा रेणुका के पांचवें पुत्र थे परशुराम। ऋषि जमादग्नि सप्तऋषि में से एक ऋषि थे। वीरता के साक्षात उदाहरण थे परशुराम। हिन्दू धर्म में मान्यता है कि वे त्रेता युग एवं द्वापर युग से अमर हैं। परशुराम की त्रेता युग के दौरान रामायण में तथा द्वापर युग के दौरान महाभारत में अहम भूमिका है। रामायण में सीता के स्वयंवर में भगवान राम द्वारा शिवजी का पिनाक धनुष तोड़ने पर परशुराम सबसे अधिक क्रोधित हुए थे।
किसके अवतार थे परशुराम
भगवान परशुराम भगवान विष्णु के जी के 6वें अवतार के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुए थे।
कहां-कहां है परशुरामजी के मंदिर
- परशुराम मंदिर, अट्टिराला, जिला कुड्डापह ,आंध्रा प्रदेश
- परशुराम मंदिर, सोहनाग, सलेमपुर, उत्तर प्रदेश
- अखनूर, जम्मू और कश्मीर
- कुंभलगढ़, राजस्थान
- महुगढ़, महाराष्ट्र
- परशुराम मंदिर, पीतमबरा, कुल्लू, हिमाचल प्रदेश
- जनपव हिल, इंदौर मध्य प्रदेश
- परशुराम कुंड
परशुराम जी के शिष्य कौन-कौन थे | Parshuram Jayanti
भीष्म पितामाह, गुरु द्रोणाचार्य एवं कर्ण आदि को शस्त्र एवं अस्त्र की शिक्षा प्रदान की थी और उनके ये सभी शिष्य उन्हें अपना गुरु यानि भगवान मानते थे।
कौन थे परशुराम जी के गुरु
परशुरामजी ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी और उन्हें प्रसन्न किया था। इसलिए परशुराम जी भी शिव भक्त थे। अत: भगवान परशुराम जी के गुरु भगवान शिव शंकर जी थे।
परशुरामजी जी ने 21 बार पृथ्वी से क्षत्रियों का किया विनाश
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार परशुराम क्रोध के पर्याय रहे हैं। अपने पिता की हत्या के प्रतिशोध में इन्होंने हैहय वंशी क्षत्रियों के साथ 21 बार युद्ध किया और उनका समूल नाश किया। इसके पश्चात उन्होंने अश्वमेघ महायज्ञ किया और संपूर्ण पृथ्वी को महर्षि कश्यप को दान कर दिया।
कालांतर तक अमर है परशुरामजी
परशुरामजी की गिनती महर्षि वेदव्यास, अश्वत्थामा, राजा बलि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, ऋषि माकंर्डेय सहित उन आठ अमर किरदारों में होती है जिन्हें कालांतर तक अमर माना जाता है।
क्या है अक्षय तृतीया का पौराणिक महत्व | परशुराम जयंती के बारे में बताएं
अक्षय तृतीया से अनेकों पौराणिक बातें जुड़ी हुई हैं। इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था। भविष्यपुराण के अनुसार वैशाख पक्ष की तृतीया के दिन ही सतयुग तथा त्रेतायुग की शुरूआत हुई थी। भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का अविर्भाव भी इसी दिन हुआ था। उत्तराखंड के प्रसिद्द तीर्थस्थल बद्रीनाथ धाम के कपाट भी आज ही के दिन पुन: खुलते हैं और इसी दिन से चारों धामों की पावन यात्रा प्रारम्भ हो जाती है। वृन्दावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मंदिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होता है। बाकी पूरे वर्ष चरण वस्त्रों से ही ढके रहते हैं। परशुराम जयंती के बारे में | परशुराम जयंती के बारे में बताइए | परशुराम जयंती के बारे में जानकारी
परशुरामजी ने की थी अपनी माता की वध | परशुराम का इतिहास
ब्रह्रावैवर्त पुराण के अनुसार, श्रीहरि विष्णु के आठवें अवतार भगवान परशुराम माता रेणुका और ॠषि जमदग्नि की संतान थे। शस्त्र विद्या और शस्त्रों के ज्ञाता भगवान परशुराम को एक बार उनके पिता ने आज्ञा दी कि वो अपनी मां का वध कर दे। भगवान परशुराम बेहद आज्ञाकारी पुत्र थे। उन्होंने अपने पिता का आदेश पाते ही तुरंत अपने परशु से अपनी मां का सिर उनके धड़ से अलग कर दिया। अपनी आज्ञा का पालन होते देख भगवान परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि अपने पुत्र से बेहद प्रसन्न हुए। पिता को प्रसन्न देख परशुराम ने अपने पिता से मां रेणुका को पुन: जीवित करने का आग्रह किया और इस प्रकार उनकी माता जीवित हुई।
परशुराम जयंती भजन | परशुराम जयंती के भजन | परशुराम जयंती का भजन
परशुराम जयंती मंत्र
अक्षय तृतीया के दिन सर्वकामना की सिद्धि हेतु भगवान परशुराम के गायत्री मंत्रों का जाप करना चाहिए। मंत्र इस प्रकार हैं-
‘ॐ ब्रह्मक्षत्राय विद्महे क्षत्रियान्ताय धीमहि तन्नो राम: प्रचोदयात्।।’
‘ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुराम: प्रचोदयात्।।’
‘ॐ रां रां ॐ रां रां परशुहस्ताय नम:।।’
परशुराम जयंती महत्व
हिन्दू धर्म धर्म की मान्यता के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म ब्राह्माणों और ऋषियों पर होने वाले अत्याचारों खत्म करने के लिए हुआ था. इस दिन दान-पुण्य करने का खास महत्व है. मान्यता है कि इस जयंती के दिन पूजा करने से फल की प्राप्ति होती है. साथ ही जिन लोगों की संतान की प्राप्ति नहीं हो रही है उन लोगों को इस दिन पूजा-पाठ और उपवास करना चाहिए.
जानिए, परशुराम जयंती के लिए पूजा की विधि
- इस दिन सूर्योदय से पहले पवित्र नदी में स्नान करें. यदि यह संभव न हो तो पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए.
- स्नान के बाद दीपक जलाकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए.
- इसके बाद भगवान विष्णु को चंदन का तिलक लगाकर पूजा करें और भोग लगाएं.
भगवान परशुराम से जुड़ी पौराणिक कथा
कथा के अनुसार परशुराम जी बहुत जल्दी क्रोधवश हो जाते थे. एक बार भगवान कैलाश में भगवान भोलेनाथ (Lord Shiva) से मिलने आए थे और पार्वती पुत्र गणेश (Ganesh) ने उ परशुराम जी को जाने से रोक दिया था. जिसके बाद क्रोधित होकर भगवान परशुराम ने गणेश जी का एक दांत तोड़ दिया था. इसके बाद से ही भगवान गणेश को एकदंत कहा जाने लगा.
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