Dhirendra Shastri Mantra: पं. धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने दिया जीत का मंत्र, इसे अपनाने वालों को कभी हार का मुंह नहीं देखना पड़ेगा…

Dhirendra Krishna Shastri Mantra: मध्य प्रदेश के छतरपुर के बागेश्वर धाम की महिमा आज देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है। ऐसा माना जाता है कि बागेश्वर धाम में जो कोई भी अपनी मनोकामना लेकर आता है वो पूरी हो जाती है।

Dhirendra Krishna Shastri Mantra: मध्य प्रदेश के छतरपुर के बागेश्वर धाम की महिमा आज देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है। ऐसा माना जाता है कि बागेश्वर धाम में जो कोई भी अपनी मनोकामना लेकर आता है वो पूरी हो जाती है। वहीं बागेश्वर धाम के पीठाधिश्वर पं. धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री धाम पर आए लोगों की समस्या का निवारण करते है। वे पर्चे पर लिखकर लोगों के दुख, दर्द और समस्याएं बता देते है। साथ ही समाधान भी बताते है। पंडित शास्त्री जगह-जगह जाकर कथा और प्रवचन भी देते है। वे जनता को समस्याओं से निपटने के लिए छोटे-छोटे उपाए भी अपनी कथा के माध्यम से बताते है।

एक कथा के दौरान पं. धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री (Pandit Dhirendra Krishna Shastri) बताते है कि इस सूत्र को अपना लेने से आपको कभी हार का मुंह नहीं देखना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति धार्मिक होता है वह व्यक्ति दुख को भी सुख में बदलने की ताकत रखता है, उसकी दृष्टि और विचारधारा दुख को भी सुख में बदल देती है।

बिना धर्म का व्यक्ति ठीक वैसे ही होता है जैसे बिना लगाम का घोड़ा होता है। जिस प्रकार घोड़ा परम स्वतंत्र होता है वैसे ही बिना धर्म का व्यक्ति भी बिना लगाम का होता है और धर्म की लगाम जरूर होनी चाहिए। धर्म का मतलब ये नहीं कि आप कथा में बैठ गए शंकर जी को मान रहें है औप हनुमान जी के भक्त है तो आप धर्मात्मा हो गए धर्म का मतलब है धर्म की रक्षा करना।

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आगे उन्होंने अपनी कथा में बताया कि दो धर्मो में कभी झगड़ा नहीं हुआ है। झगड़ा हमेशा धर्म और अधर्म का होता है। धर्म एक ही है सनातन वैदिक धर्म बाकि पंत है। आगे उन्होने सूत्र देते हुए कहा कि अपने कर्म से कभी मत भटकों दुनिया आपसे क्या कह रही इन सब बातो से मत घबराओं।

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इस दौरान उन्होंने एक ब्राम्हण और बिच्छू की कहानी का उद्हारण देते हुआ बताया कि जैसे बिच्छू मरते-मरते अपनी प्रवत्ती (डंक मारना) नहीं छोड़ सकता तो साधु जीते जी बचाने कैसे छोड़ सकता है। वो अपना कर्म कर रहा हम अपना कर्म कर रहे। अपनी मंजिल पर अड़िग होकर चलते जाने एक दिन जरूर मिल जाएगी। अहिंसा धर्म है अहिंसा न करों लेकिन धर्म पर कोई धात करे तो चुप बैठना भी पाप है।

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आखिर में उन्होंने श्रद्धालुओं को कहा कि सबसे बड़ा सूत्र है ‘एकता’ इस दौरान उन्होंने एक चौपाई के जरिए समझाया कि त्रेता युग में मंत्र की शक्ति थी, सत युग में ज्ञान की शक्ति थी। जो त्रेता में मंत्र जानता था वो बलवान था सत युग में जिसे ज्ञान थे वह बलवान था और द्वापर युग जो युद्ध जीतने की कला जानता था वह बलवान था लेकिन, कल युग में ये तीनों नहीं है कलयुग में संघे, शक्ति कलयुगे है मतलब कलयुग में एकता ही शक्ति है वही बलवान है। जिसकी एकता है वो बलवान है। इसलिए एकता चाहे वो घर की हो परिवार की हो भाई-भाई की हो फिर चाहे वह समाज की हो, जो एकता पर बल देता है उससे पूरी दुनिया हार जाती है। कलयुग में एकता की ही महिमा है।

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