Kati Bihu 2022 : उत्सव नहीं प्रार्थना का पर्व

भारत के असम और उत्तर-पूर्वी राज्यों में मनाया जाने वाला एक प्रसिद्ध त्यौहार है काटी बिहू (Kati Bihu 2022)।

काटी बिहू (Kati Bihu 2022) पर्व हर साल अक्टूबर माह में मनाया जाता है इस बार यह पर्व 13 अक्टूबर 2022 को मनाया जाएगा। यह पर्व भारत के पूर्वी राज्यों में बड़ी धूमधाम और हर्षोंल्लास के साथ मनाया जाता है। Kati Bihu पर्व खासतौर पर किसानों द्वारा मनाया जाता है। वैसे तो बिहू का पर्व हर साल 3 बार मनाया जाता है। पहला बोहांग बिहू, दूसरा माघ बिहू और तीसरा काटी बिहू। तीनों का कृषि और प्रकृति के साथ इतना गहरा नाता है कि जानने पर वहां के लोगों की तारीफ करने का मन करता है।

दिल करता है कि असल में प्रकृति प्रेमी तो ये हैं। असली प्रकृति के संरक्षक तो ये हैं। इन सभी बिहू में सबसे महत्वपूर्ण त्योहार बोहांग बिहू है जो प्रतिवर्ष अप्रैल माह में मनाया जाता है। इस पर्व को ‘रोंगाली बिहू’(रंगाली बिहू in Hindi) व ‘हतबिहू’ भी कहा जाता है।

कैसे मनाते है काती बिहू उत्सव (Kati Bihu festival)

यह पर्व को खासतौर पर भारत के असम राज्य में बड़ी धूमधाम के साथ मनाते है। इस दिन स्त्री व पुरूष रंगीन व पारंपरिक सुन्दर कपड़े पहनते है। तथा एक-दूसरे के हाथ पकड़कर एक गोला बनाकर चारों तरफ घूमते है। साथ में कुछ लोग ढोल व पीपा आदि बजाते है और वे सभी गोल-गोल घूमते हुए नृत्य करते है। दरअसल, मौज-मस्ती का दूसरा नाम ही बिहू है। यह किसी हद तक सत्य भी है।

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बोहाग बिहू, Kati Bihu ओर माघ बिहू के बारे में (Kati Bihu specialities)

बिहू असम के लोगों का प्रमुख पर्व है। इसमें सभी जाति के लोग शामिल होते हैं और बड़े उत्साह के साथ तीन तरह के बिहू मनाए जाते हैं, जो तीन ऋतुओं के प्रतीक हैं। पहला बिहू जिसे बोहाग बिहू या रंगोली बिहू कहते हैं, अप्रैल में चैत्र या बैसाख में मनाया जाता है। यह असम का मुख्य पर्व है। उसके बाद आता है काति बिहू (Kati Bihu) या कंगाली बिहू। यह कार्तिक महीने (अक्तूबर) में मनाया जाता है। इसके बाद मनाया जाता है माघबिहू (यह मकर संक्रांति, 14 जनवरी) को मनाया जाता है।

गरीबों के त्योहार के नाम से भी जाना जाता है Kati Bihu

Kati Bihu को कृषि का त्यौहार व कंगाली बिहू (गरीबों का त्यौहार) भी कहा जाता है। ‘कंगाली शब्द का अर्थ गरीब होता है। इसके अलावा इस दिन साकी नामक दीपक को खेतों के किनारे बांस के खंभों के नीचे जलाया जाता है। इसके अलावा वहा के किसान कीटो से अपने खेतो की रक्षा करने के लिए मंत्रों का जाप करते है और एक अच्छी फसल की कामना करते है।

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असमिया लोग आषाढ़-श्रावण मास में धान की खेती करते हैं। आश्विन के अन्त में यह धान पककर सुनहला स्वरूप ले लेता है। प्रकृति पर निर्भर किसान खेत की लक्ष्मी ‘उपज’ को सादर घर पर लाने के लिए तैयार होता है और आश्विन-कार्तिक की संक्रान्ति के दिन उपज की मंगलकामना से खलिहान एवं तुलसी के वृक्ष के नीचे दीप प्रज्ज्वलित करके अनेक नियमों का पालन करता है। इसे ही ‘Kati Bihu’ कहते हैं। बिहू के दिन किसान के खलिहान खाली रहते हैं, इसीलिए यह महाभोज या उल्लास का पर्व न होकर प्रार्थना व ध्यान का दिन होता है। चूंकि कोई फसल काटने का यह समय नहीं होता, इसलिए किसान के पास धन नहीं होता, परन्तु इसका प्रयोग ध्यानादि कार्यक्रम में किया जाता है। इसलिए इसे ‘कंगाली बिहू’ भी कहते हैं।

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