Shree Narayana Guru केरल के एक प्रसिद्ध सामाजिक व धार्मिक सुधारक
श्री नारायण गुरु जी (Shree Narayana Guru) का जन्म 22 अगस्त, 1856 को केरल के तिरुवनंतपुरम के पास एक गांव चेमपजंथी में हुआ था। श्री नारायण गुरु के पिता का नाम ‘मदन असन’और माता का नाम कुट्टियम्मा था।
श्री नारायण गुरु इजवा (Ezhava) नामक निम्न जाति में जन्मे थे। सामाजिक मान्यताओं के अनुसार इसे ‘अवर्ण’’ (Avarna) माना जाता था। इनको घर में नानु के नाम से जाना जाता था।
Shree Narayana Guru जी झझवास (Jhajwas) जाति के लोगों के लिए एक प्रेरक प्रतिनिधि के रूप में आगे बढ़ कर आए जिन्हें अछूत जाति के रूप में विचारित व व्यव्ह्त किया जाता था। उन्होंने ब्राह्मणों के प्रभुत्व व पुरोहिताई का जमकर विरोध किया तथा सभी जातियों के लिए मन्दिर में प्रवेश के अधिकार का प्रबल समर्थन किया।
श्री नारायण गुरु की शिक्षा (Education of Shree Narayana Guru)
बचपन में ही अपने घर में रहते हुए नारायण गुरु ने संस्कृत शिक्षा पाने के बाद एक आचार्य के रूप में कई वर्षों तक अध्ययन अध्यापन का कार्य भी करवाया, इस समय इन्होंने कई भक्ति गीतों की रचना भी की। इस दौर में ही जब नानु की आयु 24- 25 रही होगी तभी इन्होंने घर गृहस्थी छोड़कर सन्यास अपनाने का निश्चय किया।
अपना घर छोडकर ये अज्ञात वास में रहने लगे। इस दौरान उनके स्थान और कार्यों के बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं थी। अज्ञात वास के दौरान ही इन्होंने अय्यावु (Ayyavu) नामक एक तमिल साधु से योग दर्शन की शिक्षा अर्जित की तथा मरुत्व के पहाड़ों में साधना में चले गए। यहां जंगली जानवरों के बीच रस बच गए, कहते है एक योगिनी के आशीर्वाद के बाद इन्होंने स्वयं को जनसेवा में समर्पित कर दिया।
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महत्त्वपूर्ण कार्य (Important Work)
- जातिगत अन्याय के खिलाफ: ‘एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर’(ओरु जति, ओरु माथम, ओरु दैवम, मानुष्यानु) (Oru Jati, Oru Matham, Oru Daivam, Manushyanu) का प्रसिद्ध नारा दिया।
- उन्होंने वर्ष 1888 में अरुविप्पुरम में भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर बनाया, जो उस समय के जाति-आधारित प्रतिबंधों के खिलाफ था।
- उन्होंने एक मंदिर कलावन्कोड में अभिषेक किया और मंदिरों में मूर्तियों की जगह दर्पण रखा। यह उनके इस संदेश का प्रतीक था कि परमात्मा प्रत्येक व्यक्ति के भीतर है।
धर्म परिवर्तन का विरोध (Protest Against Religious Conversion)
लोगों को समानता की सीख दी, लेकिन इस बात को महसूस किया कि असमानता का उपयोग धर्म परिवर्तन के लिए नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इससे समाज में अव्यवस्था की स्थिति उत्पन्न होती है। श्री नारायण गुरु ने वर्ष 1923 में अलवे अद्वैत आश्रम में एक सर्व-क्षेत्र सम्मेलन का आयोजन किया, जिसे भारत में इस तरह का पहला कार्यक्रम बताया जाता है। यह एझावा समुदाय में होने वाले धार्मिक रूपांतरणों को रोकने का एक प्रयास था।
अन्य: वर्ष 1903 में, उन्होंने संस्थापक और अध्यक्ष के रूप में एक धर्मार्थ समाज, श्री नारायण धर्म परिपालन योगम की स्थापना की। संगठन वर्तमान समय में भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कर रहा है।
वर्ष 1924 में, स्वच्छता, शिक्षा, भक्ति, कृषि, हस्तशिल्प और व्यापार के गुणों को बढ़ावा देने के लिये शिवगिरी तीर्थ की स्थापना की गई थी।
श्री नारायण गुरु का दर्शन (Darshan of Shree Narayana Guru)
श्री नारायण गुरु बहुआयामी प्रतिभा, महान महर्षि, अद्वैत दर्शन के प्रबल प्रस्तावक, कवि और एक महान आध्यात्मिक व्यक्ति थे।
साहित्यिक रचनाएं (Literary Works)
विभिन्न भाषाओं में अनेक पुस्तकें लिखीं। उनमें से कुछ प्रमुख हैं:
अद्वैत दीपिका Click PDF dwonload, असरमा, थिरुकुरल, थेवरप्पाथिंकंगल etc…
राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान (Contribution to the National Movement)
श्री नारायण गुरु मंदिर प्रवेश आंदोलन में सबसे अग्रणी थे और अछूतों के प्रति सामाजिक भेदभाव के खिलाफ थे। नारायण गुरु ने वायकोम सत्याग्रह (त्रावणकोर) को गति प्रदान की। इस आंदोलन का उद्देश्य निम्न जातियों को मंदिरों में प्रवेश दिलाना था। इस आंदोलन की वजह से महात्मा गांधी सहित सभी लोगों का ध्यान उनकी तरफ गया।
उन्होंने अपनी कविताओं में भारतीयता के सार को समाहित किया और दुनिया की विविधता के बीच मौजूद एकता को रेखांकित किया।
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विज्ञान में योगदान (Contribution To Science)
श्री नारायण गुरु ने स्वच्छता, शिक्षा, कृषि, व्यापार, हस्तशिल्प और तकनीकी प्रशिक्षण पर जोर दिया।
श्री नारायण गुरु का अध्यारोप, दर्शनम (दर्शनमला) ब्रह्मांड के निर्माण की व्याख्या करता है।
इनके दर्शन में दैवदशकम और आत्मोपदेश शतकम जैसे कुछ उदाहरण हैं जो यह बताते हैं कि कैसे रहस्यवादी विचार तथा अंतर्दृष्टि वर्तमान की उन्नत भौतिकी से मिलते-जुलते हैं।
दर्शन की वर्तमान प्रासंगिकता
श्री नारायण गुरु की सार्वभौमिक एकता के दर्शन का समकालीन विश्व में मौजूद देशों और समुदायों के बीच घृणा, हिंसा, कट्टरता, संप्रदायवाद तथा अन्य विभाजनकारी प्रवृत्तियों का मुकाबला करने के लिये विशेष महत्त्व है।
मृत्यु
श्री नारायण गुरु की मृत्यु 20 सितंबर, 1928 को हो गई। केरल में यह दिन श्री नारायण गुरु समाधि के रूप में मनाया जाता है।