बसंत पंचमी कब है ? जानें मां सरस्वती के पूजन का महत्व
हिंदू धर्म में वसंत पंचमी मनाने को लेकर कई मान्यताएं हैं। वसंत ऋतु और वसंत पंचमी का महत्व भी अलग है। इस वर्ष वसंत पंचमी 5 फरवरी अर्थात माघ शुक्ल पंचमी को है। आइए जानें वसंत पंचमी का इतिहास, महत्व और मान्यताएं।
Basant Panchami : माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को देवी सरस्वती का अवतरण हुआ था। इसलिए इस दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन को सरस्वती और लक्ष्मी देवी का जन्म दिवस भी माना जाता है। इस पंचमी को वसंत पंचमी कहा जाता है क्योंकि वसंत पंचमी के दिन से ही वसंत ऋतु का आगमन होता है, जो सभी ऋतुओं का राजा होता है। हिंदू धर्म में वसंत पंचमी मनाने को लेकर कई मान्यताएं हैं। वसंत ऋतु और वसंत पंचमी का महत्व भी अलग है। इस वर्ष वसंत पंचमी 5 फरवरी अर्थात माघ शुक्ल पंचमी को है। आइए जानें वसंत पंचमी का इतिहास, महत्व और मान्यताएं।
तिथि, इतिहास और उत्सव की विधि – basant panchami kab hai
वसंत पंचमी माघ माह की शुक्ल पंचमी के दिन मनाई जाती है। कहा जाता है कि इसी दिन कामदेव मदन का जन्म हुआ था। लोगों का दांपत्य जीवन सुखमय हो इसके लिए लोग रतिमदन की पूजा और प्रार्थना हैं। देवी सरस्वती का जन्म वसंत पंचमी को हुआ था, इसलिए उस दिन उनकी पूजा की जाती है, और इस दिन को लक्ष्मी जी का जन्मदिन भी माना जाता है; इसलिए इस तिथि को ‘श्री पंचमी’ भी कहा जाता है। इस दिन सुबह अभ्यंग स्नान किया जाता है और पूजा की जाती है।
वसंत पंचमी पर, वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा और प्रार्थना का बहुत महत्व है। ब्राह्मण शास्त्रों के अनुसार, वाग्देवी सरस्वती ब्रह्मस्वरूप, कामधेनु और सभी देवताओं की प्रतिनिधि हैं। वह विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी हैं। अमित तेजस्विनी और अनंत गुण शालिनी देवी सरस्वती की पूजा और आराधना के लिए माघ मास की पंचमी तिथि निर्धारित की गई है। इस दिन को देवी के रहस्योद्घाटन का दिन माना जाता है। इस दिन मां सरस्वती का आह्वान कर कलश की स्थापना की जाती है और उसकी पूजा की जाती है।
देवी सरस्वती पृथ्वी पर अवतरित हुईं – Basant Panchami
जब ब्रह्मांड के निर्माता ब्रह्माजी ने जीवों और मनुष्यों की रचना की और जब उन्होंने सृजित सृष्टि को देखा, तो उन्होंने महसूस किया कि यह निस्तेज है । वातावरण बहुत शांत था तथा उसमें कोई आवाज या वाणी नहीं थी। उस समय, भगवान विष्णु के आदेश पर, ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का। धरती पर गिरे जल ने पृथ्वी को कम्पित कर दिया तथा एक चतुर्भुज सुंदर स्त्री एक अद्भुत शक्ति के रूप में प्रकट हुई। उस देवी के एक हाथ में वीणा दूसरे हाथ में मुद्रा तथा अन्य दो हाथों में पुस्तक व माला थी।
भगवान ने महिला से वीणा बजाने का आग्रह किया। वीणा की धुन के कारण पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवों, मनुष्यों को वाणी प्राप्त हुई। उस क्षण के बाद, देवी को सरस्वती कहा गया। देवी सरस्वती ने वाणी सहित सभी आत्माओं को ज्ञान और बुद्धि प्रदान की। ऐसा माना जाता है कि इस पंचमी को सरस्वती की जयंती के रूप में मनाया जाता है क्योंकि यह घटना माघ महीने की पंचमी को हुई थी। इस देवी के वागेश्वरी, भगवती, शारदा, वीणा वादिनी और वाग्देवी जैसे अनेक नाम हैं। संगीत की उत्पत्ति के कारण, उन्हें संगीत की देवी के रूप में भी पूजा जाता है। वसंत पंचमी के दिन ज्ञान और बुद्धि देने वाली देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।
देवी सरस्वती की पूजा करने की पद्धति
वसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती देवी की उपासना की जाती है। शास्त्रों में भगवती सरस्वती की पूजा व्यक्तिगत रूप से करने का वर्णन है, लेकिन वर्तमान में सार्वजनिक पूजा स्थलों पर देवी सरस्वती की मूर्ति स्थापित कर पूजा करने की प्रथा शुरू हुई है। चूंकि यह ज्ञान का त्योहार है, इसलिए छात्र शिक्षण संस्थान को सजाते हैं। विद्यारंभ संस्कार के लिए यह सबसे अच्छा दिन है।
नए कार्य के लिए शुभ दिन
वसंत पंचमी का दिन सभी प्रकार के शुभ कार्यों के लिए बहुत ही शुभ माना गया है। पुराणों में भी वसंत पंचमी को मुख्य रूप से नई शिक्षा और गृह प्रवेश के लिए बहुत ही शुभ माना गया है। वसंत पंचमी को शुभ मानने के अनेक कारण हैं। यह त्योहार आमतौर पर माघ महीने में आता है। माघ मास का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व भी है। इस महीने तीर्थ क्षेत्र में स्नान का विशेष महत्व माना गया है।
सूर्य मंदिर में वसंतोत्सव
बिहार राज्य के औरंगाबाद जिले में ‘देव’ नामक गांव है, इस गांव के सूर्य मंदिर में देवता की मूर्ति को वसंत पंचमी के दिन स्थापित किया गया था ऐसा माना जाता है। इस दिन देवता को स्नान कराया जाता है तथा उनके पुराने कपड़े बदलकर, उन्हें नए लाल कपड़े पहनाए जाते हैं। भक्त इस दिन गीत, संगीत और नृत्य कर उत्सव मनाते हैं।
वसंत पंचमी का उद्देश्य
इस दिन का उद्देश्य, सृष्टि में नव चेतना और नव निर्माण के कारण हुए आनंद को व्यक्त करना और आनंदित होना है। वसंत पंचमी का कृषि संस्कृति से संबंध है ऐसा ध्यान में आता है। इस दिन नवान्न इष्टी यह एक छोटा यज्ञ किया जाता है। इस दिन खेतों में उगाई गई नई फसल को घर में लाया जाता है और भगवान को अर्पित किया जाता है। राजस्थान, मथुरा तथा वृंदावन में इस दिन विशेष त्यौहार मनाए जाते हैं। इस दिन गणपति, इंद्र, शिव और सूर्यदेव से प्रार्थना भी की जाती है। वसंत ऋतु में वृक्षों में नए पल्लव आते हैं। प्रकृति के इस बदलते स्वरूप के कारण मनुष्य उत्साही और प्रसन्नचित्त हो जाता है।
विद्या का आरंभ – Basant Panchami
वसंत पंचमी का दिन विद्या आरंभ के लिए महत्वपूर्ण है, जो छोटे बच्चों को शिक्षा और औपचारिक शिक्षा की दुनिया से परिचित कराने की रस्म है. अधिकांश स्कूल और कॉलेज बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा की व्यवस्था करते हैं.
Basant Panchami का इतिहास
शास्त्रों एवं पुराणों कथाओं के अनुसार बसंत पंचमी और सरस्वती पूजा को लेकर एक बहुत ही रोचक कथा है, कथा कुछ इस प्रकार है।
बसंत पंचमी के ऐतिहासिक महत्व को लेकर यह मान्यता है कि सृष्टि रचियता भगवान ब्रह्मा ने जीवो और मनुष्यों की रचना की थी तथा ब्रह्मा जी जब सृष्टि की रचना करके उस संसार में देखते हैं तो उन्हें चारों ओर सुनसान निर्जन ही दिखाई देता है एवम् वातावरण बिलकुल शांत लगता है जैसे किसी की वाणी ना हो । यह सब करने के बाद भी ब्रह्मा जी मायूस , उदास और संतुष्ट नहीं थे । तब ब्रह्मा जी भगवान् विष्णु जी से अनुमति लेकर अपने कमंडल से जल पृथ्वी पर छिडकते है । कमंडल से धरती पर गिरने वाले जल से पृथ्वी पर कंपन होने लगता है और एक अद्भुत शक्ति के रूप में चतुर्भुजी(चार भुजाओं वाली) सुंदर स्त्री प्रकट होती है । उस देवी के एक हाथ में वीणा और दुसरे हाथ में वर मुद्रा होती है बाकी अन्य हाथ में पुस्तक और माला थी । ब्रह्मा जी उस स्त्री से वीणा बजाने का अनुरोध करते है ।
देवी के वीणा बजाने से संसार के सभी जीव-जंतुओ को वाणी प्राप्त को जाती है । उस पल के बाद से देवी को “सरस्वती” कहा गया । उस देवी ने वाणी के साथ-साथ विद्या और बुद्धि भी दी इसलिए बसंत पंचमी के दिन घर में सरस्वती की पूजा भी की जाती है । अर्थात दुसरे शब्दों में बसंत पंचमी का दूसरा नाम “सरस्वती पूजा” भी है । देवी सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है ।
बसंत पंचमी का महत्व
भारतीय पंचांग में छह ऋतूऐ होती है । बसंत ऋतू को ऋतुओ का राजा कहा जाता है । बसंत पंचमी फूलों के खिलने और नई फसल के आने का त्योहार है । ऋतुराज बसंत का बहुत अत्यधिक महत्व है । ठंड के बाद प्रकृति की छटा देखते ही बनती है । इस मौसम में खेतों में सरसों की फसल पीले फूलों के साथ , आम के पेड़ पर आए फूल , चारों तरफ हरियाली और गुलाबी ठण्ड मौसम को और भी खुशनुमा बना देती है , यदि सेहत की दृष्टि से देखा जाए तो यह मौसम बहुत अच्छा होता है । इंसानों के साथ-साथ पशु पक्षियों में नई चेतना का संचार होता है , इस ऋतू को कामबाण के लिए भी अनुकूल माना जाता है , यदि हिन्दू मान्यताओं के अनुसार देखा जाए तो इस दिन देवी सरस्वती का जन्म हुआ था , यही कारण है कि यह त्यौहार हिंदुओं के लिए बहुत खास है । इस त्यौहार पर पवित्र नदियों में लोग स्नान आदि करते हैं , इसके साथ ही हाथी बसंत मेला आदि का भी आयोजन किया जाता है ।
बसंत पंचमी के दिन को बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के आरंभ के लिए शुभ मानते हैं। इस दिन बच्चे की जीभ पर शहद से ॐ बनाना चाहिए। माना जाता है कि इससे बच्चा ज्ञानवान होता है व शिक्षा जल्दी ग्रहण करने लगता है । 6 माह पूरे कर चुके बच्चों को अन्न का पहला निवाला भी इसी दिन खिलाया जाता है । अन्नप्राशन के लिए यह दिन अत्यंत शुभ है । बसंत पंचमी को परिणय सूत्र में बंधने के लिए भी बहुत सौभाग्यशाली माना जाता है इसके साथ-साथ गृह प्रवेश से लेकर नए कार्यों की शुरुआत के लिए भी इस दिन को शुभ माना जाता है ।
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. Ujjwal Pradesh इस लेख की पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)