Vishu Festival 2022: विशु क्या है, क्या है विषुक्कणी, नरकासुर के वध की कथा
विषु (Vishu) केरल राज्य में मनाया जाने वाला एक पर्व है । मलयालम महीने मेष की पहली तिथि को मनाए जाने वाले विषु त्योहार (Vishu Festival) को केरलवासियों द्वारा नववर्ष (New Year) के रूप में मनाया जाता है, लेकिन मुख्यत: यह पर्व भगवान विष्णु (Lord Vishnu) और उनके अवतार श्रीकृष्ण (Sri krisna) को समर्पित है।
10 lines on vishu festival 2022: भारत के केरल राज्य में मनाया जाने वाला एक पर्व है Vishu। विषु पर्व केरल के प्राचीनतम पर्वों में से एक है। मलयालम महीने मेष की पहली तिथि को मनाए जाने वाले विषु त्योहार को केरलवासियों द्वारा नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। मलयालम पंचाग के अनुसार विषु के दिन सूर्य अपनी राशि को बदलकर ‘मेडम’ राशि में प्रवेश करता है, जिसके कारण नव वर्ष की शुरूआत होती है। विषु पर्व के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस त्योहार के लिए केरल में सार्वजनिक अवकाश रहता है। विषु के दिन को लेकर कई प्रकार की मान्यताएं तथा कथाएं प्रचलित है लेकिन मुख्यत: यह पर्व भगवान विष्णु और उनके अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। vishu festival essay
क्या महत्व है विशु कानी का ( importance of Vishu Kani)
मलयाली लोगों के लिए विशु कानी पर्व का विशेष महत्व है। देश भर में विषु पर्व अपने-अपने अंदाज में रवि की फसलों के पकने की खुशी में मनाया जाता है। ज्योतिष के अनुसार जब सूर्य अश्विनी नक्षत्र में प्रवेश करता है तो राशि चक्र में बदलाव आना शुरू हो जाता है और नए वर्ष की शुरूआत होती है। इसी समय भगवान विष्णु और उनके अवतार श्री कृष्ण की पूजा की जाती है। भगवान विष्णु को समय का देवता माना जाता है जो खगोलीय वर्ष के पहले दिन को चिन्हित करते हैं। मान्यताओं के अनुसार इसी दिन श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। vishu festival in hindi
क्या है विषुक्कणी (What is Vishukkani)
केरल का स्थानीय पुष्प कानि कोन्ना लोकप्रिय ‘विषुक्कानि’ है। विषु के दिन की प्रमुख विशेषता ‘विषुक्कणी’ है। ‘विषुक्कणी’ उस झांकी-दर्शन को कहते हैं, जिसका दर्शन विषु के दिन प्रात:काल सर्वप्रथम किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि विषुक्कणी का प्रभाव वर्ष भर रहता है। विषु की पूर्व संध्या को ‘कणी’ दर्शन की सामग्री इकट्ठी करके सजा दी जाती है। एक कांसे के डेगची या अन्य किसी बर्तन में चावल, नया कपड़ा, ककड़ी, कच्चा आम, पान का पत्ता, सुपारी, कटहल, आइना, अमलतास के फूल आदि सजा कर रख दिए जाते हैं। इस बर्तन के पास एक लम्बा दीपक जलाकर रखा जाता है। प्रात: काल परिवार का कोई बुजुर्ग व्यक्ति एक-एक करके परिवार के सदस्यों की आँखें मूंद ‘विषुक्कणी’ तक ले आकर आँखें खुलवाते हैं।
विषु पर्व दिन 2022 | Vishu date 2022
वर्ष 2022 में विषु पर्व 15 अप्रैल, शुक्रवार के दिन मनाया जाएगा।
List of Monthly Holidays 2022 | Month Wise Government Holidays in 2022
कहां मनाया जाता है विषु पर्व | vishu festival is celebrated in which state
विषु पर्व (Vishu Festival) केरल राज्य में मनाया जाता है। इस दिन केरल राज्य में अवकाश होता है और सभी दफ्तर, स्कूल, कालेज आदि बंद रहते है ताकि सभी लोग अपने परिवार के साथ मिलकर विषु पर्व का आनंद ले सके।
क्यों मनाया जाता है विषु (Vishu) पर्व?
पूरे केरल तथा कर्नाटक के कुछ हिस्सों में विषु पर्व (Vishu Festival) को काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। विषु पर्व को मनाए जाने को लेकर कई सारे कारण है। इस पर्व को मलयालम नव वर्ष (Malyalam New Year) के रूप में भी मनाया जाता है। इसके साथ ही इसी दिन केरल में धान के फसल की बुवाई भी शुरू होती है। इसलिए यह किसानों के लिए भी एक खुशी का अवसर होता है, जिसमें वह अपने पिछलों फसल के लिए ईश्वर को धन्यवाद देते हैं और अपनी अगली फसल के अच्छे पैदावार की कामना करते है।
विषु पर्व (Vishu Festival) कैसे मनाया जाता है- रिवाज एंव परंपरा (customs and traditions )
केरल में रहने वाले हिंदु धर्म के लोगों का प्रमुख त्योहार है विषु। विषु पर्व का लोग बेसब्री से इंतजार करते है क्योंकि इस दिन को केरल राज्य के नववर्ष के रूप में भी मनाया जाता है। विषु के दिन लोग सुबह में नहा-धोकर विषुकानी दर्शन के साथ अपना दिन शुरू करते हैं। मलयालम में विषु का अर्थ होता है विष्णु और कानी का अर्थ देखना अर्थात विषुकानी का अर्थ है सर्वप्रथम भगवान विष्णु के दर्शन करना। इसके पश्चात लोग नये या फिर साफ-सुधरे वस्त्र पहनकर मंदिर जाते है और देवताओं का दर्शन करते है। इसके साथ ही इस दिन का सबसे प्रतिक्षित समय विषु भोजन का होता है। जिसमें 26 प्रकार के विभिन्न शाकाहारी भोजनों को परोसा जाता है। इसी तरह इस दिन देवताओं को भी विशेष प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है जिसमें एक विशेष बर्तन जिसे ह्यउरालीह्ण के नाम से जाना जाता है। इसमें खीरा, कद्दू, नारियल, कच्चा केला, आम, अनानास, चावल, सुपारी, अनाज आदि जैसी चीजों को देवताओं के समाने रखकर भोग लगाया जाता है।
विषु पर्व की आधुनिक परंपरा | Who celebrates Vishu in Kerala?
आज के समय में विषु के पर्व में भी कई सारे परिवर्तन आए है। वैसे तो कुछ चीजों को छोड़कर इसमें अधिकतर परिवर्तन अच्छे ही हुए है। वर्तमान में इस पर्व को पूरे केरल राज्य में काफी उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन अधिकतर घरों में भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। इसके साथ ही आज के समय में इस पर्व को अब काफी वृहद स्तर पर मनाया जाता है और इस दिन कई बड़ी-बड़ी झांकियां भी निकाली जाती है। हालांकि आज के आधुनिक दौर में लोग अपने कार्यों में व्यस्तता के चलते हुए। पहलें के तरह इस पर्व का आनंद नही ले पाते हैं क्योंकि आज के समय में लोग रोजगार या फिर व्यवसाय के लिए अपने घरों-गावों से बाहर रहते है और इस पर्व पर घर नही आ पाते। जिसके कारण अब इस पर्व का पारिवारिक महत्व कम होता जा रहा है। हमें इस बात का अधिक से अधिक प्रयास करना चाहिए कि हम इस पर्व को अपने परिवार और प्रियजनों के साथ मनायें ताकि इस पर्व का सांस्कृतिक और पारंपरिक महत्व को ऐसे ही बना रहे।
विषु पर्व का इतिहास (History of Vishu Festival)
केरल में मनाये जाने वाले विषु नामक इस अनोखे त्याहार का इतिहास काफी पुराना है। यह पर्व भी वैसाखी, गुड़ी पाड़वा तथा चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तरह नये वर्ष के शुभारंभ तथा फसलों से जुड़ा हुआ है और एकदूसरे से कुछ ही दिनों के अंतर पर मनाया जाता है। पहले के ही तरह आज के समय में भी इस पर्व को केरल के किसानों द्वारा नयी धान की बुवाई के खुशी में काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। हालांकि इस पर्व की शुरूआत कैसे हुई इस विषय में कुछ विशेष ज्ञात नही है लेकिन इस पर्व से जुड़ी कई प्रकार की ऐतिहासिक तथा पौराणिक कथाएं प्रचलित है। इसी तरह की एक कथा अनुसार इस दिन सूर्य अपनी राशि में परिवर्तन करता है। जिसके कारण सूर्य का सीधा प्रकाश भगवान विष्णु पर पड़ता है। अपने इसी खगोलीय तथा पौराणिक कारण के वजह से केरल राज्य के लोगों द्वारा इस दिन को मलयालम नववर्ष के रुप में भी मनाया जाता है।
नरकासुर के वध की कथा (Story of Narakasura’s Slaughter)
लोगों का मानना है कि इसी दिन भगवान विष्णु के आठवें अवतार योगेश्वर श्रीकृष्ण ने नरकासुर का भी वध किया था। यहीं कारण है की इस दिन विष्णु भगवान की पूजा के साथ ही इस दिन उनके कृष्ण की अवतार की पूजा सबसे अधिक की जाती है। मान्यता के अनुसार, प्रगज्योतिषपुर नगर में नरकासुर नामक दैत्य राज्य करता था। अपने तपस्या के बल पर उसने ब्रम्हाजी से यह वर मांगा कि कोई भी देवता, असुर या राक्षस उसका वध ना कर सके। अपने इस वरदान के कारण वह स्वयं को अजेय समझने लगा। अपने शक्ति के अहंकार में चूर होकर वह सभी लोकों का स्वामी बनने का स्वप्न देखने लगा और अपनी शक्ति से इंद्र, वरुण, अग्नि, वायु आदि जैसे देवताओं को परास्त कर दिया। शक्ति के घमंड में उसने कई सारे संतो और 16 हजार स्त्रियों को भी बंदी बना लिया। उसके इस उत्याचार से परेशान होकर सभी देवतागण और ऋषिमुनि भगवान श्रीकृष्ण के पास पहुंचे। भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी विनती को स्वीकार करते हुए नरकासुर पर आक्रमण कर दिया और अपने सुदर्शन चक्र से नरकासुर के दो टुकड़े करके उसका वध कर दिया। इस प्रकार से उन्होंने अत्याचारी तथा आततायी नरकासुर का अंत करके लोगों को उसके अत्याचारों से मुक्त किया।