Til Chaturthi पर 3 करोड़ के गहनों से सजे खजराना गणेश, 51000 लड्डुओं का लगा भोग

आज है तिल चतुर्थी (Til Chaturthi), इस मोके पर खजराना गणेश परिवार ने गणेश जी को तीन करोड़ के गहनों से सजाया व तिल-गुड़ के सवा लाख लड्डुओं का महाभोग भी लगाया।

Til Chaturthi: उज्जवल प्रदेश, इंदौर. तिल चतुर्थी के मौके पर खजराना गणेश परिवार को तीन करोड़ के गहनों से सजाया गया है। तिल-गुड़ के सवा लाख लड्डुओं का महाभोग लगाकर तीन दिनी पारंपरिक मेले की शुरुआत आज से हुई। सुबह पंडित मोहन भट्ट एवं पंडित अशोक भट्ट के निर्देशन में ध्वजा पूजन कलेक्टर एवं मंदिर प्रबंधन समिति के अध्यक्ष आशीष सिंह, मंदिर प्रशासक हर्षिका सिंह, विधायक महेंद्र हार्डिया एवं अन्य अतिथियो नें किया।

भक्त मंडल के अरविंद बागड़ी, कैलाश पंच एवं गोकुल पाटीदार ने बताया कि भक्तों की सुविधा के लिए मंदिर में दर्शनों की व्यवस्था महाकाल की तर्ज पर की गई है, ताकि किसी को भी आधे घंटे से अधिक प्रतीक्षा न करना पड़े। मंदिर को आकर्षक पुष्प एवं विद्युत सज्जा से शृृंगारित किया गया है।

Til Chaturthi – 1735 में हुई मंदिर की स्थापना

खजराना गणेश मंदिर का निर्माण रानी अहिल्याबाई होलकर ने करवाया था। माना जाता है कि औरंगजेब से मूर्ति की रक्षा करने के लिए मूर्ति को एक कुएं में छिपा दिया गया था और 1735 में इसे कुएं से निकाल लिया गया था और मंदिर की स्थापना अहिल्याबाई होलकर द्वारा की गई थी। वर्तमान में मंदिर प्रशासन के अधीन है और मुख्य पूजा-पाठ भट्ट परिवार करता है।

Alos Read: महाकालेश्वर के करें लाइव दर्शन, जाने Aarti-Darshan का समय

परिसर में है 33 मंदिर और 40 दानपेटियां

खजराना गणेश मंदिर के मुख्य पुजारी अशोक भट्ट ने बताया कि मंदिर में 40 दानपेटियां हैं और 33 छोटे-बड़े मंदिर विभिन्न देवी-देवताओं के हैं। मंदिर में सेवा के कार्य किए दान की राशि से कराए जाते हैं। सुबह 11 बजे से लेकर रात 11 बजे तक अन्न क्षेत्र नि:शुल्क चालू रहता है। साथ ही औषधालय में जांच कर दवाई मुफ्त में दी जाती है। समय-समय पर मंदिर प्रशासन विभिन्न सेवा कार्य संचालित करता है। Til Chaturthi

Alos Read: रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर (RCB) के कब, कहां और किससे होंगे मैच

बैलगाडिय़ों से पहुंचे थे मेले में खूब बनती थी दाल-बाटी

खजराना गणेश मंदिर का तिल चतुर्थी मेला प्राचीनकाल से लग रहा है। इंदौर शहर मल्हारगंज, जूनी इंदौर, राजबाड़ा क्षेत्र, रामबाग के आसपास ही सीमित था। रहवासी मेले में बैलगाडिय़ों से खजराना गांव पहुंचते थे। वहीं देपालपुर, कम्पेल, सांवेर, गौतमपुरा और महू से भी सैकड़ों श्रद्धालु मेले में तीन दिन का आटा-दाल साथ लाते थे और मंदिर के आसपास मैदान में डेरा डाल देते थे। तीन दिन जमकर दाल-बाटी-चूरमा बनता था।

Related Articles

Back to top button