हाथियों की मौत पर एनजीटी ने लिया संज्ञान, जारी किया नोटिस, सात दिन में मांगा जवाब

भोपाल

 मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में हाथियों की रहस्यमय मौत के मामले में एनजीटी ने खुद संज्ञान लिया है। एनजीटी ने इस मामले में कई अधिकारियों को नोटिस जारी किए हैं। इनमें प्रधान मुख्य वन संरक्षक (मध्य प्रदेश), मुख्य वन्यजीव व warden (एमपी), कलेक्टर (उमरिया), भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) के निदेशक, भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के निदेशक और केंद्रीय कृषि मंत्रालय के सचिव शामिल हैं।

एक सप्ताह में मांगी रिपोर्ट

वहीं, एनजीटी ने सभी को एक हफ्ते के अंदर, अगली सुनवाई से पहले, जवाब दाखिल करने को कहा है। यह मामला शुरुआत में एनजीटी की प्रधान पीठ के सामने आया था, जिसे बाद में केंद्रीय पीठ को स्थानांतरित कर दिया गया। एनजीटी के आदेश में उन रिपोर्टों का हवाला दिया गया है जो बांधवगढ़ में 10 हाथियों की मौत को दूषित कोदो बाजरा खाने से जोड़ती हैं।

ये हैं शुरुआती वजह

शुरुआती जांच से पता चलता है कि मौतें बाजरा में मायकोटॉक्सिन संदूषण के कारण हुई हो सकती हैं। प्रभावित क्षेत्र से नमूने आगे के विश्लेषण के लिए दो प्रयोगशालाओं में भेजे गए थे, उत्तर प्रदेश में भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान और मध्य प्रदेश के सागर में एक फोरेंसिक लैब।

मायकोटॉक्सिन का पड़ता है प्रभाव

एनजीटी के आदेश में आगे कहा गया है कि कोदो बाजरा, जो भारत के कई हिस्सों में मुख्य भोजन है, अपने उच्च फाइबर और खनिज सामग्री के लिए जाना जाता है। हालांकि, जब यह मायकोटॉक्सिन से संक्रमित हो जाता है। खासकर मानसून के मौसम में नमी की स्थिति में तो इसमें फंगल संक्रमण हो सकता है। यह संदूषण मनुष्यों और जानवरों दोनों के लिए गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकता है। इससे लीवर और किडनी खराब हो सकती है और साथ ही गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएं भी हो सकती हैं।

कोदो को ठहराया जा रहा जिम्मेदार

यह आरोप लगाया गया है कि बांधवगढ़ में हाथियों ने दूषित कोदो बाजरा या उसके उपोत्पादों का सेवन किया होगा, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें जहर मिला होगा। माना जा रहा है कि फंगल संदूषण से उत्पन्न मायकोटॉक्सिन से हाथियों की मौत हुई है। एनजीटी ने इस तरह के व्यापक प्रभावों के बारे में चिंता व्यक्त की है। उसने कहा कि इससे वन्यजीवों और पशुधन दोनों को खतरा हो सकता है जो दूषित फसल के संपर्क में आ सकते हैं।

इस फैसले का दिया हवाला

एनजीटी ने यह भी कहा कि यह घटना संभावित रूप से वन संरक्षण अधिनियम, 1980 और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 का उल्लंघन हो सकती है, जो महत्वपूर्ण पर्यावरणीय अनुपालन मुद्दों को जन्म देती है। ट्रिब्यूनल ने मामले को स्वत: संज्ञान लेने के अपने अधिकार पर जोर दिया। इसके लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय के नगर निगम ग्रेटर मुंबई बनाम अंकिता सिन्हा और अन्य (2021 एससीसी ऑनलाइन एससी 897) के मामले में फैसले का हवाला दिया।

एक सप्ताह में जवाब मांगा

अपने आदेश के हिस्से के रूप में, एनजीटी ने राज्य और केंद्र सरकार के अधिकारियों को अगली सुनवाई से कम से कम एक सप्ताह पहले ट्रिब्यूनल की केंद्रीय क्षेत्रीय पीठ के समक्ष हलफनामे के रूप में अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। ट्रिब्यूनल ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि कोई प्रतिवादी अपने कानूनी वकील की सलाह के बिना जवाब दाखिल करता है, तो उसे ट्रिब्यूनल की सहायता के लिए वर्चुअली उपस्थित रहना होगा।

यह मामला भोपाल में केंद्रीय क्षेत्रीय पीठ के अधिकार क्षेत्र में होने के कारण इस पीठ को स्थानांतरित कर दिया गया था। मूल केस रिकॉर्ड को तदनुसार अग्रेषित करने का निर्देश दिया गया था।

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