राजस्थान बना चाइल्ड लेबर और ट्रैफिकिंग का अड्डा, 3 साल में 1381 मामले दर्ज; रिपोर्ट में खुलासा

उदयपुर
उदयपुर संभाग चाइल्ड लेबरऔर चाइल्ड ट्रैफिकिंग का अड्डा बनता जा रहा है। सरकार व गैर सरकारी संस्थाओं की ओर से लगातार कार्रवाई के बाद भी बाल मजदूरी व तस्करी के मामले खत्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं। दुकानों, प्रतिष्ठानों, फैक्ट्रियों व खेतों में बच्चों से श्रम करवाया जा रहा है। इनमें अधिकांश बच्चे आदिवासी बाहुल्य जिले उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर व प्रतापगढ़ जिले के हैं। उदयपुर समेत पूरे राजस्थान में ही बालश्रम के मामले पकड़े गए हैं। हाल ही में बाल कल्याण समिति के साथ एक एनजीओ ने फैक्ट्रियों पर छापेमारी कर कई बच्चों को शेल्टर करवाया था।

गृह विभाग की हाल ही जारी रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के विभिन्न थानों में 1 जनवरी 2020 से 31 जनवरी 2022 तक बाल श्रमिकों से काम करवाने के 1381 मामले दर्ज हुए हैं। इसमें 84 मामले बाल तस्करी के सामने आए हैं। इनमें से ज्यादातर मामले में उदयपुर संभाग के ही हैं। बाल श्रम से जुड़े इन मामलो में पुलिस अब तक 1295 मामलों में अदालतों में चालान पेश कर चुकी है। 34 मामलों में एफआईआर लगा दी गई है और 52 मामलों में अनुसंधान जारी है। इन सभी मामलों में अब तक 1588 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। 84 अभियुक्तों की गिरफ्तारी होना शेष है।

बालश्रम करने वालों की उम्र 8 से 10 साल
इस रिपोर्ट के मुताबिक बालश्रम के जो मामले दर्ज किए हैं, उनमें बच्चों की उम्र 8 से दस साल सामने आई है। इन बच्चों से दस घंटों से ज्यादा काम करवाया जा रहा है। इनमें कई बच्चे तो ऐसे थे, जिनको यह भी मालूम नहीं था कि उन्हें काम के बदले पैसा मिल रहे हैं या नहीं? क्योंकि, काम करने वाले लोग पैसा उनके अभिभावक या दलालों को दे रहे थे। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि पुलिस ने गुजरात ले जा रहे बच्चों को हाइवे पर रेस्क्यू कर शेल्टर करवाया है। राजस्थान में जो मामले पकड़े गए हैं, उनमें बच्चों को उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, झारखंड, मध्यप्रदेश, असम, हरियाणा, ओडिशा से लाया गया था। इनमें कुछ नेपाल से तस्करी कर लाए गए बच्चे भी थे।

बच्चों के लिए शेल्टर होम चलाने वाली आसरा विकास संस्थान के भोजराज सिंह बताते हैं कि पुलिस और स्वयं सेवी संस्थाओं की ओर से चाइल्ड ट्रैफिकिंग व चाइल्ड लेबर को लेकर नियमित रूप से अभियान नहीं चलाया जा रहा है। जो पकड़े गए हैं वो संख्या बहुत कम है। साथ ही जिन बच्चों को शेल्टर करवाया जा रहा है, उनके पुनर्वास के लिए कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। बच्चों को छोड़ा जाता है तो वे दुबारा बाल मजदूरी का शिकार हो जाते हैं।

 

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