Ujjain Sinhastha 2028: पुजारी महासंघ की मांग- ‘छावनी’ और ‘पेशवाई’ शब्दों को बदलें, हर अखाड़े के लिए बने अलग घाट
Ujjain Sinhastha 2028: प्रयागराज कुम्भ से सीख लेते हुए क्राउड मैनेजमेंट पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। पुजारी महासंघ ने मांग की है कि विशेष रूप से "छावनी" और "पेशवाई" शब्द ब्रिटिश और मराठा काल से जुड़े हुए हैं। इन्हें हटाकर सनातनी परंपरा के अनुरूप नए नाम दिया जाना चाहिए।"

Ujjain Sinhastha 2028: उज्जवल प्रदेश, उज्जैन. उज्जैन सिंहस्थ 2028 की तैयारियां जोरों पर हैं। प्रयागराज कुम्भ से सीख लेते हुए इस बार क्राउड मैनेजमेंट पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। वहीं, प्रयागराज कुम्भ में “शाही स्नान” को बदलकर “अमृत स्नान” किए जाने के बाद अब उज्जैन के महाकाल मंदिर के पुजारी और पुजारी महासंघ के अध्यक्ष महेश पुजारी ने कुम्भ में प्रचलित कुछ पारंपरिक शब्दों को बदलने की मांग की है।
इसके साथ में अलग-अलग अखाड़े को अलग-अलग घाट पर स्नान करने की सलाह भी दी है। उज्जैन महाकाल मंदिर के वरिष्ठ पुजारी महेश शर्मा ने कहा “जैसे भगवान महाकाल की सवारी का नाम बदलकर “राजसी सवारी” किया गया था, उसी प्रकार कुम्भ में उपयोग किए जाने वाले अन्य शब्दों का भी संशोधन होना चाहिए। क्योंकि इस बार प्रयागराज में शाही शब्द हटाकर अमृत स्नान नाम दिया गया।” उन्होंने विशेष रूप से “छावनी” और “पेशवाई” शब्दों का उल्लेख किया, जो क्रमशः ब्रिटिश और मराठा काल से जुड़े हुए हैं। उनका मानना है कि ये शब्द ऐतिहासिक रूप से विदेशी शासन की याद दिलाते हैं, इसलिए इन्हें हटाकर सनातनी परंपरा के अनुरूप नए नाम दिए जाने चाहिए।”
ऐतिहासिक इमारतों के नाम बदलने की अपील
महाकाल मंदिर के पुजारी महेश शर्मा ने कहा “देश में कई ऐतिहासिक इमारतें अब भी मुगलकालीन नामों से जानी जाती हैं, जो गुलामी के प्रतीक के रूप में देखी जाती हैं। सरकार से आग्रह है कि इनका नाम बदलकर भारतीय संस्कृति और परंपरा के अनुरूप रखा जाए। महाकाल की सवारी का नाम पहले ही बदला जा चुका है।” गौरतलब है कि 2024 में सावन-भादौ माह के दौरान निकलने वाली महाकाल की अंतिम सवारी को “शाही सवारी” के बजाय “राजसी सवारी” कहा गया था। इस बदलाव को व्यापक समर्थन मिला था और सभी उद्घोषणाओं में “राजसी सवारी” का ही प्रयोग किया गया था।