Maharana Pratap Jayanti kab aati hai, 2022 में कब है महाराणा प्रताप जयंती

Maharana Pratap ने मेवाड़ पर 25 वर्ष (1572 से 1597) तक शासन किया। उन्होंने कभी भी में मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की और उन्हें वीरता और दृढ़ निश्चय के कारण एक महानतम शासक के रूप में जाना जाता है।

Maharana Pratap Jayanti : महाराणा प्रताप का जन्म 16वीं शताब्दी में वीरों की भूमि राजस्थान में हुआ था। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार महान हिंदू राजा महाराणा प्रताप का जन्म कुंभलगढ़ में 9 मई, 1540 को हुआ था, लेकिन उस समय ज्येष्ठ मास की तृतीया तिथि थी, इसी कारण हिंदी पंचांग के अनुसार महाराणा प्रताप की 482वीं जयंती 02 जून 2022 को गुरुवार के दिन मनाई जाएगी। महाराणा प्रताप का पूरा नाम: Maharana Pratap Singh Sisodiya. मेवाड़ के महानतम शासक महाराणा प्रताप ने मुगल शासक अकबर को कई बार रणभूमि में टक्कर दी। maharana pratap jayanti in hindi में आप को हम महान योद्धा महाराणा प्रताप से मिलवाते है।

महाराणा प्रताप जयंती 2022, 2023 और 2024

महाराणा प्रताप जयंती राजस्थान के 16वी सदी के प्रसिद्ध सैनिक महाराणा प्रताप की याद में मनाई जाती है।

सालतारीखदिनछुट्टियांराज्य / केन्द्र शासित प्रदेश
20222 जूनगुरूवारमहाराणा प्रताप जयंतीHP, HR & RJ
202322 मईसोमवारमहाराणा प्रताप जयंतीHP, HR & RJ
20249 जूनरविवारमहाराणा प्रताप जयंतीHP, HR & RJ

पिछले कुछ वर्ष

सालतारीखदिनछुट्टियांराज्य / केन्द्र शासित प्रदेश
202113 जूनरविवारमहाराणा प्रताप जयंतीHP, HR & RJ
202025 मईसोमवारमहाराणा प्रताप जयंतीHP, HR & RJ
20196 जूनगुरूवारमहाराणा प्रताप जयंतीHP, HR & RJ
201816 जूनशनिवारमहाराणा प्रताप जयंतीHP, HR & RJ
201728 मईरविवारमहाराणा प्रताप जयंतीHP, HR & RJ

महाराणा प्रताप के बचपन का जन्म

भारत के महान नायक व स्वतंत्रता प्रेमी महाराणा प्रताप के बचपन का नाम कीका/कूका था। उनके पिता का नाम राणा उदय सिंह तथा माता का नाम जयंता बाई थी।

राणा प्रताप की 11 पत्नियों और उनके पुत्रों पुत्रियों के नाम है

महारानी अजबदे पंवार :- अमरसिंह और भगवानदास

अमरबाई राठौर :- नत्था

शहमति बाई हाडा :-पुरा

अलमदेबाई चौहान:- जसवंत सिंह

रत्नावती बाई परमार :-माल,गज,क्लिंगु

लखाबाई :- रायभाना

जसोबाई चौहान :-कल्याणदास

चंपाबाई जंथी :- कल्ला, सनवालदास और दुर्जन सिंह

सोलनखिनीपुर बाई :- साशा और गोपाल

फूलबाई राठौर :-चंदा और शिखा

खीचर आशाबाई :- हत्थी और राम सिंह

महाराणा प्रताप की मृत्यु व समाधि

  • 17 जनवरी 1597
  • महाराणा प्रताप की समाधि बाडोली में बनी हुई है।

List of Monthly Holidays 2022 | Month Wise Government Holidays in 2022

Holidays in January 2022Holidays in February 2022Holidays in March 2022Holidays in April 2022
Holidays in May 2022Holidays in June 2022Holidays in July 2022Holidays in August 2022
Holidays in September 2022Holidays in October 2022Holidays in November 2022Holidays in December 2022

प्रताप का राज्याभिषेक

महाराणा प्रताप (32 वर्ष) का राज्याभिषेक उनके पिता राणा उदयसिंह की मृत्यु के बाद 1972 में हुआ था। फिर दोबारा 1972 में ही विधि पूर्वक राज्याभिषेक कुंभलगढ़ में हुआ था। मेवाड़ के इतिहास में महाराणा प्रताप दूसरे शासक थे जिनका राज्य अभिषेक दो बार हुआ था। इनसे पहले इनके पिता राणा उदय सिंह का राज्याभिषेक दो बार हुआ था।

अकबर के चार शांतिदूत

जलाल खां : अकबर ने 1572 में जलाल खान को महाराणा प्रताप के पास भेजा था लेकिन महाराणा प्रताप ने मना कर दिया।

मिर्जा राजा मानसिंह: 1573 में अकबर ने महाराणा प्रताप से संधि करने के लिए मिर्जा राजा मानसिंह को भेजा, लेकिन महाराणा ने उसके साथ भोजन नहीं किया और अपनी जगह अपने पुत्र अमर सिंह को भोजन करने बिठाया इससे मानसिंह क्रुद्ध हो गया और वह लौट गया।

भगवान दास: अकबर ने तीसरी बार 1573 में मान सिंह के पिता भगवान दास को शांति वार्ता के लिए भेजा लेकिन इस बार भी उन्हें निराश होकर ही लौटना पड़ा।

टोडरमल: अकबर ने अंतिम संधि वार्ता के लिए राजा टोडरमल को भेजा टोडरमल बहुत बुद्धिमान था। उसने वार्ता से पहले ही अनुमान लगा लिया था कि प्रताप कभी भी हमसे संधि नहीं करेगा।

महाराणा प्रताप की प्रतिज्ञा

महाराणा प्रताप की प्रतिज्ञा थी कि जब तक मेवाड़ को पूर्ण स्वतंत्र नहीं कराएंगे तब तक राज प्रसाद में विश्राम नहीं करेंगे और साथ ही थाली में भोजन भी नहीं करेंगे। और कभी भी अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं करेंगे।

हल्दीघाटी युद्ध

18 जून 1576 को हल्दीघाटी के मैदान में मेवाड़ के महाराणा प्रताप तथा मिर्जा राजा मानसिंह के मध्य हल्दीघाटी का महा युद्ध हुआ। प्रसिद्ध इतिहासकार के अनुसार हल्दीघाटी का युद्ध 21 जून 1576 को हुआ था। जो मानसिंह की जीत के पश्चात समाप्त हुआ। महाराणा प्रताप का युद्ध : कई इतिहासकार इस युद्ध को अनिर्णायक युद्ध भी मानते हैं। क्योंकि इस युद्ध में अकबर का उद्देश्य महाराणा प्रताप को बंदी बनाना था जिसमें वह सफल नहीं हो सका।

हल्दीघाटी युद्ध के अन्य नाम

  • कर्नल जेम्स टॉड: मेवाड़ का थमोर्पोली
  • अबुल फजल : खमनोर का युद्ध
  • बदायूंनी : गोगुंदा का युद्ध

हल्दीघाटी युद्ध के लिए तैयारी

हल्दीघाटी में युद्ध करने आने से पहले मानसिंह ने अपनी सेना को मांडलगढ़ में 21 दिन तक प्रशिक्षण दिया था। हल्दीघाटी युद्ध में मानसिंह के हाथी का नाम मदार्ना था तथा युद्ध से पहले अंतिम शिविर मोलेला में लगाया था। जबकि महाराणा प्रताप के पास केवल 18000 सैनिक थे। इनमें से 3000 भील सैनिक तथा 5000 अफगान सैनिक थे। महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम चेतक तथा दो हाथी लूणा व रामप्रसाद थे। दोनों हाथी बहुत विशाल थे और उन्होंने बहुत से सैनिकों का संहार किया था।

क्यों हारे थे महाराणा प्रताप हल्दीघाटी युद्ध

हिंदू राजा महाराणा प्रताप के पास सिर्फ 18000 सैनिक थे जबकि मानसिंह के पास 50000 सैनिक थे। राजस्थान के वीरों के आगे मानसिंह के सैनिक टिक नहीं पाए और एक समय पर युद्ध महाराणा प्रताप के पक्ष में आता दिख रहा था, लेकिन युद्ध के दौरान महाराणा प्रताप के छोटे भाई शक्ति सिंह जो अकबर से जा मिले थे 50,000 की सेना लेकर युद्ध में आ गए। इसके बाद महाराणा प्रताप का विजय होना बहुत मुश्किल हो गया था इसलिए उनके सरदारों ने उन्हें युद्ध से सुरक्षित जाने के लिए बाध्य किया।

महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक

महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक बहुत वीर और साहसी था और बहुत विशाल भी था। युद्ध के दौरान जब चेतक के मुंह पर लग गई थी तब उसे हाथी की सूंड पहना कर युद्ध में ले जाया गया चेतक इतना विशाल था कि मुगल सैनिक उसे हाथी ही समझ रहे थे। युद्ध में जब चेतक की एक टांग कट गई थी फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी और महाराणा प्रताप को वहां से सुरक्षित निकाला और 30 फीट चौड़े नाले को एक छलांग में ही पार कर दिया, लेकिन तब तक वह बहुत घायल हो चुका था और उसने बलीचा नामक गांव अपने प्राण त्याग दिए। जहां पर चेतक की समाधि बनी हुई है।

भामाशाह से मुलाकात

अकबर ने 1577 ईस्वी में शाहबाज खान के नेतृत्व में एक विशाल सेना कुंभलगढ़ भेजी और कुंभलगढ़ को अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया। इसके बाद महाराणा प्रताप जंगलों में चले गए और वहां पर सैन्य बल एकत्रित करने लगे, लेकिन वहां पर उन्हें आर्थिक तंगी से गुजरना पड़ा फिर उनकी मुलाकात भामाशाह नामक व्यापारी से हुई और भामाशाह अपने जीवन की अर्जित संपूर्ण कमाई को महाराणा प्रताप के चरणों में अर्पित कर दिया और कहा कि यह सब आप ही के पूर्वजों से मिला हुआ है। भामाशाह ने एक बहुत बड़ी धनराशि महाराणा को दान की जिससे महाराणा को बहुत सहायता मिली और उन्होंने एक सशक्त सेना का निर्माण किया ।और भामाशाह को अपना सेनापति नियुक्त किया।

दिवेर-छापली का युद्ध, दिवेर युद्ध

एक बहुत बड़ी सेना बनाकर महाराणा प्रताप ने 1582 में दिवेर नामक स्थान पर मुगल सेना पर भीषण आक्रमण कर दिया।इस युद्ध में महाराणा ने अपनी सेना को दो भागों में विभाजित किया एक सेना का नेतृत्व वे स्वयं दूसरी टुकड़ी का नेतृत्व उनके पुत्र अमरसिंह कर रहे थे और मुगल सेना का नेतृत्व अकबर का चाचा सुल्तान खां कर रहा था।इस युद्ध में महाराणा ने मुगल सेना को बुरी तरह से पराजित किया ।तथा सुल्तान खां का सिर धड़ से अलग कर दिया। कर्नल जेम्स टॉड ने दिवेर छापोली की युद्ध को मेवाड़ का मैराथन भी कहा।

मेवाड़ के राजपूत राजवंश
(1326 –1884)
राणा हम्मीर सिंह(1326–1364)
राणा क्षेत्र सिंह(1364–1382)
राणा लखा(1382–1421)
राणा मोकल(1421–1433)
राणा कुम्भ(1433–1468)
उदयसिंह प्रथम(1468–1473)
राणा रायमल(1473–1508)
राणा सांगा(1508–1527)
रतन सिंह द्वितीय(1528–1531)
राणा विक्रमादित्य सिंह(1531–1536)
बनवीर सिंह(1536–1540)
उदयसिंह द्वितीय(1540–1572)
महाराणा प्रताप(1572–1597)
अमर सिंह प्रथम(1597–1620)
करण सिंह द्वितीय(1620–1628)
जगत सिंह प्रथम(1628–1652)
राज सिंह प्रथम(1652–1680)
जय सिंह(1680–1698)
अमर सिंह द्वितीय(1698–1710)
संग्राम सिंह द्वितीय(1710–1734)
जगत सिंह द्वितीय(1734–1751)
प्रताप सिंह द्वितीय(1751–1754)
राज सिंह द्वितीय(1754–1762)
अरी सिंह द्वितीय(1762–1772)
हम्मीर सिंह द्वितीय(1772–1778)
भीम सिंह(1778–1828)
जवान सिंह(1828–1838)
सरदार सिंह(1838–1842)
स्वरूप सिंह(1842–1861)
शम्भू सिंह(1861–1874)
उदयपुर के सज्जन सिंह(1874–1884)
फतेह सिंह(1884–1930)
भूपाल सिंह(1930–1947)
भगवंत सिंह(1947-1970)
महेन्द्र सिंह(1970-last king)

 

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